धर्म-अध्यात्म

तिथि के देवता की उपासना करने से दूर होते हैं रोग

Tulsi Rao
14 Dec 2021 11:34 AM GMT
तिथि के देवता की उपासना करने से दूर होते हैं रोग
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भारतीय संस्कृति में सभी शुभ कार्यों का प्रारंभ मुहूर्त के आधार पर किया जाता है. शुभ मुहूर्त में किए गए कार्य की सफलता सुविधायुक्त हो जाती है. शुभ मुहूर्त हेतु पंचांग आवश्यक होता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Tithi Devta: भारतीय संस्कृति में सभी शुभ कार्यों का प्रारंभ मुहूर्त के आधार पर किया जाता है. शुभ मुहूर्त में किए गए कार्य की सफलता सुविधायुक्त हो जाती है. शुभ मुहूर्त हेतु पंचांग आवश्यक होता है. पंचांग अर्थात पांच अंग. मुहूर्त में पंचांग के पांच अंगों का बहुत गहनता से अध्ययन कर सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है. ये पांच अंग- तिथि, वार, योग, करण एवं नक्षत्र है. इन्हीं पांच अंगों में सर्वप्रथम जो महत्वपूर्ण योग है वह है तिथि.

तिथि- भारतीय पंचांग में वर्ष को माह में, माह को पक्ष में विभाजित किया गया है. प्रत्येक माह में दो पक्ष कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष. प्रत्येक में 15 तिथियां निर्धारित की गई हैं. दोनों पक्षों में प्रतिपदा से चतुर्दशी तक समान तिथि, पूर्णिमा एवं अमावस्या दोनों में पंद्रहवीं तिथि है. इस प्रकार कुल प्रतिपदा से पूर्णिमा एवं अमावस्या सोलह तिथियां हैं. प्रत्येक तिथि के स्वामी भिन्न-भिन्न हैं. प्रत्येक तिथि पर निश्चित तिथि स्वामी को ही महत्ता प्रदान की गई है. इसको समझते हैं -
प्रथमा: इसे प्रथम तिथि भी कहा गया है, इस तिथि के स्वामी अग्नि देव हैं. इनकी उपासना से घर में धन-धान्य, आयु, यश, बल, मेधा आदि की वृद्धि होती है.
द्वितीया: इस तिथि के स्वामी ब्रह्मा जी हैं. इस दिन किसी ब्रह्मचारी ब्राह्मण की पूजा करना एवं उन्हें भोजन, अन्न वस्त्र का दान देना श्रेयस्कर होता है.
तृतीया: इस तिथि में गौरी जी की पूजा करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है. कुबेर जी भी तृतीया के स्वामी माने गये हैं. अतः इनकी भी पूजा करने से धन-धान्य, समृद्धि प्राप्त होती है.
चतुर्थी: इस तिथि के स्वामी श्री गणेश जी हैं. जिन्हें प्रथम पूज्य भी कहा जाता है. इनके स्मरण से सारे विघ्न दूर हो जाते हैं.
पंचमी: इस तिथि के स्वामी नाग देवता हैं. इस दिन नाग की पूजा से भय तथा कालसर्प योग शमन होता है.
षष्ठी: इस तिथि के स्वामी स्कंद अर्थात कार्तिकेय हैं. इनकी पूजा करने से व्यक्ति मेधावी, सम्पन्न एवं कीर्तिवान होता है. अल्पबुद्धि एवं हकलाने वाले बच्चे के लिए कार्तिकेय की पूजा करना श्रेयस्कर होता है. जिनकी मंगल की दशा हो या कोई कोर्ट केस में फंसा हो उसके लिए कार्तिकेय की पूजा श्रेष्ठ फलदायी है.
सप्तमी: इस तिथि के स्वामी सूर्य हैं. सूर्य आरोग्यकारक माने गये हैं. साथ ही जगत के रक्षक भी. इसलिए अच्छे स्वास्थ्य एवं आरोग्यता हेतु विशेषकर जिसे आंखों की समस्या हो उसके लिए इस दिन चाक्षुषी विद्या का पाठ करना माना गया है.
अष्टमी: इस दिन के स्वामी रुद्र हैं.अतः इस तिथि में वृषभ से सुशोभित भगवान सदाशिव का पूजन करने से सारे कष्ट एवं रोग दूर होते हैं.
नवमी: इस तिथि के दिन दुर्गा जी की पूजा करने से यश में वृद्धि होती है. साथ ही किसी प्रकार की ऊपरी बाधा एवं शत्रु नाश के लिए आज के दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए.
दशमी: इस तिथि के देवता यमराज हैं. इस दिन इनकी पूजा करने से ये सभी बाधाओं को दूर करते हैं एवं मनुष्य का नर्क और अकाल मृत्यु से उद्धार करते हैं.
एकादशी: इस तिथि के देवता विश्वेदेवा हैं. इनकी पूजा करने से वो भक्तों को धन धान्य एवं भूमि प्रदान करते हैं.
द्वादशी: इस तिथि के स्वामी श्री हरि विष्णु जी हैं. इनकी पूजा करने से मनुष्य समस्त सुखों को भोगता है, साथ ही सभी जगह पूज्य एवं आदर का पात्र बनता है. इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना होता है. परंतु इस दिन तुलसी तोड़ना निषिद्ध है.
त्रयोदशी: इस तिथि के स्वामी कामदेव हैं. इनकी पूजा करने से व्यक्ति रूपवान होता है एवं सुंदर पत्नी प्राप्त करता है. साथ ही वैवाहिक सुख भी पूर्णरूप से मिलता है.
चतुर्दशी: इसके स्वामी भगवान शिव हैं. अतः प्रत्येक मास की चतुर्दशी विशेषकर कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन शिव जी की पूजा, अर्चना एवं रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव मनोकामना पूर्ण करते हैं एवं समस्त ऐश्वर्य एवं सम्पन्नता प्रदान करते हैं.
पूर्णिमा: इस तिथि के देवता चंद्र हैं. इनकी पूजा करने से मनुष्य का समस्त संसार पर आधिपत्य होता है. विशेषकर जिनकी चंद्र की दशा चल रही हो उनके लिए पूर्णिमा का व्रत रखना एवं चंद्रमा को अर्घ्य देना सुख में वृद्धि करता है. जिनके बच्चे अक्सर सर्दी जुकाम, निमोनिया आदि रोगों से ग्रसित हों उनकी मां को एक वर्ष तक पूर्णिमा का व्रत रखना चाहिए और चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना व्रत करना चाहिए.
अमावस्या: इस तिथि पर पितरों का आधिपत्य है. अतः इस दिन अपने पितरों की शांति हेतु अन्न वस्त्र का दान देना एवं श्राद्ध करना श्रेयस्कर है. इससे प्रसन्न हो पितर देवता अपने कुल की वृद्धि हेतु संतान एवं धन समृद्धि देते हैं.


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