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माता शीतला को लगता है बासी भोजन का भोज
शीतला सप्तमी के दिन मान्यता है कि घरों में चूल्हा नहीं जलता है यानी इस दिन ताजा भोजन नहीं बनता है। बल्कि एक दिन पहले भोजन बनाकर रखा जाता है और माता के पूजन करने के बाद सभी सदस्य बासी भोजन ग्रहण करते हैं। इसी कारण इसे बसौड़ा भी कहा जाता है। माता शीतला को उत्तर भारत में तो रोगों को दूर करने वाली मानी जाती हैं। चिकन पोक्स यानि चेचक नामक रोग को आम बोलचाल की भाषा में माता ही कहा जाता है। इस दिन माता के लिए लोग उपवास रखते हैं जिसके पीछे एक कथा प्रचलति है।
शीतला सप्तमी व्रत की कथा
वैसे शीतला सप्तमी के व्रत की कई कथाएं हैं लेकिन एक कथा काफी प्रचलित है। कथा के मुताबिक एक बार शीतला सप्तमी के दिन एक बुढ़िया व उसकी दो बहुओं ने व्रत रखा। इस दिन बासी भोजन ग्रहण करने का रिवाज है। इसलिए दोनों बहुओं ने एक दिन पहले ही खाना पका लिया था। दोनों ही बहुओं को कुछ समय पहले संतान की प्राप्ति हुई थी। बासी भोजन खाने से कहीं बच्चे बीमार न हो जाएं इसी डर से उन्होंने अपने लिए रोटी और चूरमा बना लिया। जब सास ने बासी भोजन ग्रहण करने की कही तो उन्होंने बहाना बनाकर बासी खाना खाने से इनकार कर दिया। इस कर्म से माता शीतला गुस्सा हो गई और दोनों ही संतानों की मृत्य दंड दे दिया। जब सास को सब कुछ पता चला तो उसने दोनों को घर से निकाल दिया।
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