धर्म-अध्यात्म

भाई दूज के दिन चित्रगुप्त देव की पूजा, कलम-दवात की पूजा का है विधान

Shiddhant Shriwas
5 Nov 2021 4:45 AM GMT
भाई दूज के दिन चित्रगुप्त देव की पूजा, कलम-दवात की पूजा का है विधान
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कायस्थ ही नहीं, पठन-पाठन व लेखन से जुड़े सभी लोग उनकी पूजा अत्यंत श्रद्धा और विश्वास से करते हैं

धर्म भारत की संस्कृति और समाज का मूल आधार रहा है, जिसमें देवी-देवताओं का स्थान अप्रतिम है। जीवन के मंगलमय होने की कामना से यहां विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा, विभिन्न अवसरों पर की जाती है। ऐसे ही पूजित देवताओं में से एक हैं भगवान श्री चित्रगुप्त, जिनकी वार्षिक पूजा-आराधना हर वर्ष कार्त्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन की जाती है।

कलम के देवता के रूप में प्रसिद्ध अक्षरजीवी, लेखक कुलश्रेष्ठ, लेखकों को अक्षर प्रदान करने वाले, महालेखाकार आदि विशेषणों से अलंकृत चित्रगुप्त देव की उत्पत्ति कथा का विस्तार से वर्णन पद्म पुराण के सृष्टि खण्ड में मिलता है। विवरण मिलता है कि ब्रह्मा जी ने जगत के कल्याण के लिए विष्णु जी, शिव जी और अपनी स्वयं की शक्तियों को संचित किया और इन्हीं त्रिदेवों के तेज से हाथों में कलम-दवात, पत्रिका और पट्टी लिए हुए श्री चित्रगुप्त प्रगट हुए। युगपिता ब्रह्मा जी की काया से उत्पन्न होने के कारण इनके कुल को 'कायस्थ' कहा गया और हर किसी के हृदय में विराजमान होने के कारण इन्हें 'चित्रगुप्त' की संज्ञा मिली। त्रिदेवों के तेज से उत्पन्न होने के कारण श्री चित्रगुप्त में सत्, रज् और तम् ये तीनों गुण विद्यमान हैं।
भगवान चित्रगुप्त की बारह संतानें हुईं। इन बारह आदि पुरुषों के वंशज बारह कायस्थ हुए। ये सभी बारह पुत्र देश के अलग-अलग भागों में बसे। स्कंद पुराण के अनुसार, अपरा विद्या के ज्ञाता, सदाचारी, धैर्यवान, उपकारी, राजा-प्रजा सेवक व क्षमाशील- यह कायस्थों के सात लक्षण होते हैं और इनके सात कर्म बताए गए हैं- पढ़ना, पढ़ाना, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान देना, दान लेना तथा वेद का लेखन सम्मिलित है।
सृष्टि के सभी देहधारियों के भाग्य-कर्मफल अंकित करने वाले श्री चित्रगुप्त कर्म के आधार पर, बिना पक्षपात के सबका लेखा-जोखा रखते हैं। मनोकामनाओं और मांगलिक कार्यों को पूरा करने वाले श्री चित्रगुप्त के जीवन चरित्र में ज्ञान, विद्या, सरलता, सहजता, पवित्रता, सच्चाई, और विश्वास के सात दीप प्रज्ज्वलित हैं। ये दीप समाज को ज्ञान, शिक्षा और बुद्धि की त्रिजोत जलाए रखने का संदेश देते हैं। कलम-दवात की पूजा से जुड़े इस दिन का भारतीय संस्कृति में बहुत महत्त्व है। सिर्फ कायस्थ ही नहीं, जो भी पठन-पाठन और लेखन से जुड़े हैं, वो भगवान चित्रगुप्त की पूजा बहुत श्रद्धा और विश्वास से करते हैं। चित्रगुप्त भगवान कलम के अधिष्ठाता देव हैं। यही कारण है कि प्राचीन काल से उनकी प्रतिष्ठा है।
नमस्तेस्तु चित्रगुप्ते, यमपुरी सुरपूजिते।
लेखनी-मसिपात्र, हस्ते, चित्रगुप्त नमोस्तुते।


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