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दिवाली पर इस शुभ मुहूर्त में करें महालक्ष्मी पूजन, जानिए इसकी पूजन सामग्री एवं विधि
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| दिवाली के दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी जी के अलावा इस दिन गणेश जी और कुबेर भगवान की पूजा करनी भी बेहद शुभ होती है। मान्यता है कि दिवाली के दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और भक्तों के घर आती हैं। ऐसे में व्यक्ति को दिवाली के दिन अपने घर को साफ-सुथरा रखना चाहिए। साथ ही दिए भी जलाने चाहिए। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। तो आइए जानते हैं मां लक्ष्मी की पूजन सामग्री और कैसे करें महालक्ष्मी का आह्वान।
दिवाली पर लक्ष्मी का पूजन मुहूर्त:
यह त्यौहार भी इस वर्ष 14 नवंबर को मनाया जाएगा। दिवाली के शुभ मुहूर्त की बात करें तो लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त शाम 5 बजकर 30 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 25 मिनट तक का है। प्रदोष काल मुहूर्त शाम 5 बजकर 27 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 6 मिनट तक रहेगा। वृषभ काल मुहूर्त शाम 5 बजकर 30 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 25 मिनट तक है।
मां लक्ष्मी पूजन सामग्री:
इस दिन पूजा करते समय लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, शमी का पत्ता, कुमुकम, रोली, पान, गंगाजल, धनिया, गुड़, श्वेस वस्त्र, जनेऊ, चौकी, इत्र, सुपारी, नारियल, चावल, इलायची, लौंग, कपूर, धूप, मिट्टी, अगरबत्तियां, रूई, दीपक, कमल गट्टे का माला, फूल, फल, गेहूं, जौ, दूर्वा, सिंदूर, चंदन, पंचामृत, मेवे, दूध, बताशे, खील, कलावा, दही, शहद, कलश, चंदन, चांदी का सिक्का, बैठने के लिए आसन, हवन कुंड, हवन सामग्री, आम के पत्ते का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा हवन में बेल की लकड़ी, सूखे नारियल का गोला, बिना चीनी की खीर और सफेद तिल का इस्तेमाल करना चाहिए।
इस तरह करें महालक्ष्मी का आह्वान:
दीपावली पर दीप जलाकर महालक्ष्मी का आह्वान किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद ही लक्ष्मी जी का अवतरण हुआ था। ऋग्वेद के दूसरे अध्याय के छठे सूक्त में आनंद कर्दम ऋषि द्वारा श्री देवी को समर्पित एक वाक्यांश मौजूद है। इन्हीं को भारतीय जनमानस ने मंत्र के रूप में स्वीकारा है जिससे महालक्ष्मी का आह्वान किया जाता है। पढ़ें यह मंत्र।
'ऊँ हिरण्य वर्णा हरिणीं सुवर्णरजस्त्राम
चंद्रा हिरण्यमयी लक्ष्मी जात वेदो म्आवह।
अर्थात् हरित और हिरण्यवर्णा,
हार, स्वर्ण और रजत सुशोभित
चंद्र और हिरण्य आभा
देवी लक्ष्मी का,
हे अग्नि, अब तुम करो आह्वान
'तामं आवह जात वेदो
लक्ष्मी मनपगामिनीम्
यस्या हिरण्यं विदेयं
गामश्वं पुरुषानहम्
अश्वपूर्वा रथमध्यां
हस्तिनाद प्रमोदिनीम्
श्रियं देवी मुपव्हयें
श्रीर्मा देवी जुषताम।।
काव्यात्मक अर्थ-
'करो आह्वान
हमारे गृह अनल, उस देवी श्री का अब,
वास हो जिसका सदा और जो दे धन प्रचुर,
गो, अश्व, सेवक, सुत सभी,
अश्व जिनके पूर्वतर,
मध्यस्थ रथ,
हस्ति रव से प्रबोधित पथ,
देवी श्री का आगमन हो,
यही प्रार्थना है!