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धर्म-अध्यात्म
नवरात्रि के तीसरे दिन करें मां चंद्रघंटा की पूजा...जाने पूजा विधि और मंत्र
Subhi
15 April 2021 1:06 AM GMT
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आज चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है। आज के दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप यानी मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।
आज चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि है। आज के दिन मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप यानी मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। तृतीया तिथि आज दोपहर 3 बजकर 28 मिनट तक रहेगी। इसके बाद से चतुर्थी तिथि शुरू हो जाएगी। मां के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित है। इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। इनका वाहन सिंह है और दस हाथ हैं। इनके चार हाथों में कमल फूल, धनुष, जप माला और तीर है। पांचवा हाथ अभय मुद्रा में रहता है। वहीं, चार हाथों में त्रिशूल, गदा, कमंडल और तलवार है। पांचवा हाथ वरद मुद्रा में रहता है। मान्यता है कि भक्तों के लिए माता का यह स्वरू बेहद कल्याणकारी है। तो आइए जानते हैं मां चंद्रघंटा की पूजा कैसे की जाए, आरती, मंत्र, कथा और भोग विधि।
मां चंद्रघंटा की पूजा विधि:
इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा करते समय माता की चौकी पर माता चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। फिर गंगाजल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। इसके बाद चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी का घड़ा रख दें। इस पर नारियल रख दें। फिर पूजा का संकल्प लें। फिर वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां चंद्रघंटा समेत सभी देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। पूजा के दौरान आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्रपुष्पांजलि आदि करें। फिर सभी में प्रसाद बांट दें।
मां चंद्रघंटा के मंत्र:
1. पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
इस मंत्र का जाप 11 बार करें।
2. ध्यान:
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥
3. स्तोत्र पाठ:
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्
मां चंद्रघंटा की आरती:
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम
पूर्ण कीजो मेरे काम
चंद्र समान तू शीतल दाती
चंद्र तेज किरणों में समाती
क्रोध को शांत बनाने वाली
मीठे बोल सिखाने वाली
मन की मालक मन भाती हो
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो
सुंदर भाव को लाने वाली
हर संकट मे बचाने वाली
हर बुधवार जो तुझे ध्याये
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं
सन्मुख घी की ज्योत जलाएं
शीश झुका कहे मन की बाता
पूर्ण आस करो जगदाता
कांची पुर स्थान तुम्हारा
करनाटिका में मान तुम्हारा
नाम तेरा रटू महारानी
'भक्त' की रक्षा करो भवानी
मां चंद्रघंटा का भोग:
अगर इस दिन कन्याओं को खीर, हलवा या स्वादिष्ट मिठाई भेंट की जाए तो मां बेहद प्रसन्न हो जाती हैं। आज के दिन मां चंद्रघंटा को प्रसाद के रूप में गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाया जाता है। ऐसा करने से व्यक्ति हर बाधा से मुक्त हो जाता है।
मां चंद्रघंटा व्रत कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, दानवों के आतंक को खत्म करने के लिए मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का स्वरूप लिया था। महिषासुर नामक राक्षस ने देवराज इंद्र का सिंहासन हड़प लिया था। वह स्वर्गलोक पर राज करना चाहता था। उसकी यह इच्छा जानकार देवता बेहद ही चितिंत हो गए। देवताओं ने इस परेशानी के लिए त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सहायता मांगी। यह सुन त्रिदेव क्रोधिक हो गए। इस क्रोध के चलते तीनों के मुख से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई उससे एक देवी का जन्म हुआ। भगवान शंकर ने इन्हें अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया। फिर इसी प्रकार अन्य सभी देवी देवताओं ने भी माता को अपना-अपना अस्त्र सौंप दिया। वहीं, इंद्र ने मां को अपना एक घंटा दिया। इसके बाद मां चंद्रघंटा महिषासुर का वध करने पहुंची। मां का यह रूप देख महिषासुर को यह आभास हुआ कि इसका काल नजदीक है। महिषासुर ने माता रानी पर हमला बोल दिया। फिर मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का संहार कर दिया। इस प्रकार मां ने देवताओं की रक्षा की।
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