धर्म-अध्यात्म

भगवान शिव की अराधना इन शुभ मुहूर्तों में करें, जाने भोलेनाथ को प्रसन्न करने का सबसे आसान उपाय

Bhumika Sahu
16 Dec 2021 2:50 AM GMT
भगवान शिव की अराधना इन शुभ मुहूर्तों में करें, जाने भोलेनाथ को प्रसन्न करने का सबसे आसान उपाय
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हिंदू धर्म में शुभ मुहूर्त में पूजा करने का विशेष महत्व होता है। शुभ मुहूर्त में पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं आज के शुभ मुहूर्त और भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे आसान उपाय...

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज मार्गशीर्ष माह की त्रयोदशी तिथि है। त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। प्रदोष व्रत भगवान शंकर को समर्पित होता है। इस दिन विधि- विधान से भगवान शंकर की अराधना की जाती है। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत अधिक महत्व होता है। प्रदोष व्रत में प्रदोष काल में पूजा का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व होता है। आज गुरुवार है जिस वजह से इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जाएगा। गुरु प्रदोष व्रत करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से संतान पक्ष को लाभ होता है। हिंदू धर्म में शुभ मुहूर्त में पूजा करने का विशेष महत्व होता है। शुभ मुहूर्त में पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं आज के शुभ मुहूर्त और भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे आसान उपाय...

इन शुभ मुहूर्तों में करें पूजा- अर्चना-
ब्रह्म मुहूर्त- 05:18 ए एम से 06:12 ए एम
अभिजित मुहूर्त- 11:56 ए एम से 12:37 पी एम
विजय मुहूर्त- 02:00 पी एम से 02:41 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 05:16 पी एम से 05:40 पी एम
निशिता मुहूर्त- 11:50 पी एम से 12:44 ए एम, दिसम्बर 17
प्रदोष काल- 05:27 पी एम से 08:11 पी एम- प्रदोष व्रत में प्रदोष काल में पूजा करने का विशेष महत्व होता है।
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शिवजी को प्रसन्न करने का सबसे आसान उपाय-
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर जल अर्पित करें। शिवलिंग पर जल अर्पित करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। जल अर्पित करने के बाद भगवान शिव की ये आरती अवश्य करें।
भगवान शिव की आरती-
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥


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