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धर्म-अध्यात्म
चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन आज मां ब्रह्मचारिणी की करें पूजा
Tara Tandi
10 April 2024 6:29 AM GMT
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ज्योतिष न्यूज़ : चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 9 अप्रैल दिन मंगलवार से हो चुकी है और आज नवरात्रि का दूसरा दिन है जो कि मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की साधना आराधना को समर्पित होता है इस दिन भक्त देवी मां की पूजा आराधना करते हैं और व्रत भी रखते हैं
माना जाता है कि ऐसा करने से देवी की कृपा प्राप्त होती है लेकिन इसी के साथ ही अगर आज के दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के दौरान उनकी प्रिय चालीसा और आरती का पाठ किया जाए तो सुख सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है और कष्टों का निवारण हो जाता है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं चमत्कारी पाठ।
मां ब्रह्मचारिणी चालीसा—
दोहा
कोटि कोटि नमन मात पिता को, जिसने दिया ये शरीर।
बलिहारी जाऊँ गुरू देव ने, दिया हरि भजन में सीर।।
स्तुति
चन्द्र तपे सूरज तपे, और तपे आकाश ।
इन सब से बढकर तपे,माताऒ का सुप्रकाश ।।
मेरा अपना कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा ।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ॥
पद्म कमण्डल अक्ष, कर ब्रह्मचारिणी रूप ।
हंस वाहिनी कृपा करो, पडू नहीं भव कूप ॥
जय जय श्री ब्रह्माणी, सत्य पुंज आधार ।
चरण कमल धरि ध्यान में, प्रणबहुँ माँ बारम्बार ॥
चौपाई
जय जय जग मात ब्रह्माणी,
भक्ति मुक्ति विश्व कल्याणी।
वीणा पुस्तक कर में सोहे,
शारदा सब जग सोहे ।।
हँस वाहिनी जय जग माता,
भक्त जनन की हो सुख दाता।
ब्रह्माणी ब्रह्मा लोक से आई,
मात लोक की करो सहाई।।
क्षीर सिन्धु में प्रकटी जब ही,
देवों ने जय बोली तब ही।
चतुर्दश रतनों में मानी,
अदभुत माया वेद बखानी।।
चार वेद षट शास्त्र कि गाथा,
शिव ब्रह्मा कोई पार न पाता।
आदि शक्ति अवतार भवानी,
भक्त जनों की मां कल्याणी।।
जब−जब पाप बढे अति भारी,
माता शस्त्र कर में धारी।
पाप विनाशिनी तू जगदम्बा,
धर्म हेतु ना करी विलम्बा।।
नमो: नमो: ब्रह्मी सुखकारी,
ब्रह्मा विष्णु शिव तोहे मानी।
तेरी लीला अजब निराली,
सहाय करो माँ पल्लू वाली।।
दुःख चिन्ता सब बाधा हरणी,
अमंगल में मंगल करणी।
अन्न पूरणा हो अन्न की दाता,
सब जग पालन करती माता।।
सर्व व्यापिनी असंख्या रूपा,
तो कृपा से टरता भव कूपा।
चंद्र बिंब आनन सुखकारी,
अक्ष माल युत हंस सवारी।।
पवन पुत्र की करी सहाई,
लंक जार अनल सित लाई।
कोप किया दश कन्ध पे भारी,
कुटुम्ब संहारा सेना भारी।।
तु ही मात विधी हरि हर देवा,
सुर नर मुनी सब करते सेवा।
देव दानव का हुआ सम्वादा,
मारे पापी मेटी बाधा।।
श्री नारायण अंग समाई,
मोहनी रूप धरा तू माई।।
देव दैत्यों की पंक्ति बनाई,
देवों को मां सुधा पिलाई।।
चतुराई कर के महा माई,
असुरों को तू दिया मिटाई।
नौ खण्ङ मांही नेजा फरके,
भागे दुष्ट अधम जन डर के।।
तेरह सौ पेंसठ की साला,
आस्विन मास पख उजियाला।
रवि सुत बार अष्टमी ज्वाला,
हंस आरूढ कर लेकर भाला।।
नगर कोट से किया पयाना,
पल्लू कोट भया अस्थाना।
चौसठ योगिनी बावन बीरा,
संग में ले आई रणधीरा।।
बैठ भवन में न्याय चुकाणी,
द्वारपाल सादुल अगवाणी।
सांझ सवेरे बजे नगारा,
उठता भक्तों का जयकारा।।
मढ़ के बीच खड़ी मां ब्रह्माणी,
सुन्दर छवि होंठो की लाली ।
पास में बैठी मां वीणा वाली,
उतरी मढ़ बैठी महाकाली ।।
लाल ध्वजा तेरे मंदिर फरके,
मन हर्षाता दर्शन करके।
दूर दूर से आते रेला,
चैत आसोज में लगता मेला।।
कोई संग में, कोई अकेला,
जयकारो का देता हेला।
कंचन कलश शोभा दे भारी,
दिव्य पताका चमके न्यारी।।
सीस झुका जन श्रद्धा देते,
आशीष से झोली भर लेते।
तीन लोकों की करता भरता,
नाम लिए सब कारज सरता ।।
मुझ बालक पे कृपा कीज्यो,
भुल चूक सब माफी दीज्यो।
मन्द मति जय दास तुम्हारा,
दो मां अपनी भक्ती अपारा ।।
जब लगि जिऊ दया फल पाऊं,
तुम्हरो जस मैं सदा सुनाऊं।
श्री ब्रह्माणी चालीसा जो कोई गावे,
सब सुख भोग परम सुख पावे ।।
दोहा
राग द्वेष में लिप्त मन,
मैं कुटिल बुद्धि अज्ञान ।
भव से पार करो मातेश्वरी,
अपना अनुगत जान ॥
मां ब्रह्मचारिणी की आरती
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
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