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धर्म-अध्यात्म
कार्यों में सफलता और अच्छी बुद्धि प्राप्त करने के लिए करें गणेश जी की पूजा और आरती
Kajal Dubey
24 Nov 2021 2:49 AM GMT
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शुभ काम करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भगवान गणेश को विघ्नकर्ता कहा जाता है. कोई भी शुभ काम करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है. जिस तरह गणेश जी की पूजा का विधान है, उसी तरह हर शुभ कार्य या कुछ नया शुरू करने से पहले गणेश जी की आरती भी की जाती है. मान्यता है कि गजानन की पूजा करने से आपके हर कार्य शुभ-शुभ होते हैं. बुधवार को गणेश जी की पूजा और उनकी आरती से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. घर में पूजा के बाद गणेश जी की आरती जरूर की जाती है. जब तक गणेश जी की आरती ना की जाए, तब तक कोई पूजा सफल नहीं मानी जाती. ऐसी मान्यता है कि गणपति बप्पा की आरती करने से सभी भगवान भी प्रसन्न होते हैं और घर में हमेशा खुशियां बनी रहती हैं.
आरती से मन के अंदर नकारात्मक शक्तियां खत्म हो जाएगी
गणेश जी की आरती करने से नकारात्मक शक्तियां खत्म हो जाती है. गणेश जी को बुद्धिदाता भी कहा जाता है. इसलिए गणेश जी की आरती करने से सद्बुद्धि भी आती है. अपने कार्यों में सफलता और अच्छी बुद्धि प्राप्त करने के लिए गणेश जी की आरती जरूर करनी चाहिए. गौरी पुत्र गणपति की पूजा करने से सभी तरह के दुखों से मुक्ति के साथ ही घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है. शास्त्रों के मुताबिक, बुधवार के दिन गणेश जी की पूजा अर्चना के बाद आरती करने से सभी समस्याएं, संकट, रोग-दोष दूर हो जाती है और उनकी कृपा सदैव बनी रहती हैं.
आरती में इन चीजों को शामिल करें
गणेश जी की आरती में गणपति के प्रिय भोग जैसे कि मोदक, लड्डू, केला आदि भी शामिल करें.
गणेश जी की आरती इस प्रकार है
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
एकदंत दयावंत चार भुजा धारी।
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी।।
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डू के भोग लगे संत करें सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
अंधे को आंख देत कोढिन को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया।।
'सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
गणेश जी के मंत्र
ॐ गं गणपतये नम:
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ। निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
ॐ एकदन्ताय विद्धमहे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥
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