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Shardiya Navratri शारदीय नवरात्री : शारदीय नवरात्रि मां दुर्गा को समर्पित है। इस दौरान लोग श्रद्धापूर्वक व्रत रखते हैं और देवी की पूजा करते हैं। मां कुष्मांडा की आराधना को समर्पित नवरात्रि पर्व का आज चौथा दिन है। ऐसा कहा जाता है कि जो श्रद्धालु इस पवित्र व्रत को रखते हैं उन्हें सुख और शांति मिलती है। आपके जीवन में भी खुशियां आएंगी। अगर आप देवी दुर्गा की पूर्ण कृपा पाना चाहते हैं तो आपको इस दिन (शारदीय नवरात्रि 2024 का चौथा दिन) देवी कुष्मांडा के सामने दीपक जलाना चाहिए।
इसके बाद आपको गुड़हल का फूल और लौंग चढ़ाना चाहिए। इसके बाद अर्गला स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। कुछ ही दिनों में सुखद परिणाम दिखने लगेंगे, लेकिन इस दौरान पवित्रता का विशेष ध्यान रखें और ध्यान पर ध्यान दें। यदि आप यह उपचार देर रात को करें तो और भी अच्छा है,
।। श्री चण्डिकाध्यानम्।।
ॐ बन्धूककुसुमाभासां पञ्चमुण्डाधिवासिनीम् ।
स्फुरच्चन्द्रकलारत्नमुकुटां मुण्डमालिनीम् ।।
त्रिनेत्रां रक्तवसनां पीनोन्नतघटस्तनीम् ।
पुस्तकं चाक्षमालां च वरं चाभयकं क्रमात् ।।
दधतीं संस्मरेन्नित्यमुत्तराम्नायमानिताम् ।
।। श्री चण्डिकाध्यानम्।।
ॐ बन्धूककुसुमाभासां पञ्चमुण्डाधिवासिनीम् ।
स्फुरच्चन्द्रकलारत्नमुकुटां मुण्डमालिनीम् ।।
त्रिनेत्रां रक्तवसनां पीनोन्नतघटस्तनीम् ।
पुस्तकं चाक्षमालां च वरं चाभयकं क्रमात् ।।
दधतीं संस्मरेन्नित्यमुत्तराम्नायमानिताम् ।
।।मार्कण्डेय उवाच।।
ॐ जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ।।
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ।।
मधुकैटभविध्वंसि विधातृवरदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
महिषासुरनिर्नाशि भक्तानां सुखदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
धूम्रनेत्रवधे देवि धर्मकामार्थदायिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
निशुम्भशुम्भनिर्नाशि त्रिलोक्यशुभदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चापर्णे दुरितापहे ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
चण्डिके सततं युद्धे जयन्ति पापनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि परं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि विपुलां श्रियम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तञ्च मां कुरु ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पनिषूदिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।।
प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे ।