धर्म-अध्यात्म

रविवार के दिन क्यों नहीं तोड़ना चाहिए तुलसी, जानिए

Tara Tandi
23 Feb 2022 6:34 AM GMT
रविवार के दिन क्यों नहीं तोड़ना चाहिए तुलसी, जानिए
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भारतीय संस्कृति में किसी भी कार्य को करने से पूर्व उस कार्य को कब और कैसे करना चाहिए यह विचार किया जाता है. जिसे लोग मुहूर्त कहते हैं. मुहूर्त में काल के अवयवों के रूप में तिथि वार, नक्षत्र, योग एवं कर्ण आदि को महत्व दिया जाता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारतीय संस्कृति में किसी भी कार्य को करने से पूर्व उस कार्य को कब और कैसे करना चाहिए यह विचार किया जाता है. जिसे लोग मुहूर्त कहते हैं. मुहूर्त में काल के अवयवों के रूप में तिथि वार, नक्षत्र, योग एवं कर्ण आदि को महत्व दिया जाता है. इनमें से वार सर्वाधिक सुगम और सरल अवयव है. इसलिए इसे हर व्यक्ति अपने उपयोग में अपनी तरह लेता है और उसी अनुसार कार्य करने लगता है. सामान्यतया सात वारों में रवि, मंगल को क्रूर एवं शनि को अशुभ माना जाता है. स्थापना एवं निर्माणादि वास्तु के कार्यो में शनि को शुभ माना जाता है. भारतीय परंपरा में किसी वृक्ष एवं पौधे को अपने उपयोग के लिए लगाना, काटना या उसके पत्ते लेना आदि इस सभी कार्यों को मुहूर्त में ही करने की लोक परंपरा थी और कहीं-कहीं अभी भी है. वैद्य भी मुहूर्त के अनुसार औषधि, वनस्पति को निकालते थे. मुहूर्त की जटिलता एवं मुहूर्त के सबके लिए सुगम व सुलभ न होने के कारण आज भी वार का ही उपयोग सामान्य लोग करते हैं. मुहूर्त के प्रधान अवयव तिथि, वार आदि सभी विष्णु रूप माने जाते हैं.

इनमें रविवार भगवान विष्णु को सर्वाधिक प्रिय है. इसलिए रविवार को विष्णु प्रिया तुलसी को नहीं तोड़ना चाहिए. ऐसा विधान बना है, कई जगहों पर क्रूर वार होने के कारण मंगलवार को भी तुलसी नहीं तोड़ते. मुहूर्त लोक पर अधिक आधारित एवं प्रचलित होते हैं. इसलिए तुलसी तोड़ने के संदर्भ में भी लोक की प्रधानता प्रचलित हुई. सभी जगहों पर रविवार को तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए. यह धारणा प्रचलित नहीं है. जैसे विष्णु प्रधान धाम श्री बद्रीनाथ एवं जगन्नाथ में भगवान के पूजन एवं श्रृंगार में प्रतिदिन तुलसी का ही प्रयोग होता है. यहां पर प्रतिदिन तुलसी तोड़ी जाती है और भगवान का पूजन श्रृंगार किया जाता है. हमारे शास्त्रों ने लोक के आधार पर आचरण की व्यवस्था बनाई है. सात से अधिक लोक को प्रधानता दी है.
रविवार को तुलसी न तोड़ने के पीछे का रहस्य
तुलसी और विष्णु के प्रेम के पीछे एक कहानी है. दरअसल तुलसी का विवाह विष्णु के ही दूसरे रूप शालिग्राम से देवउठनी एकादशी पर संपन्न हुआ था. इसके साथ ही हफ्ते के सभी दिन एक जैसे नहीं माने गए हैं. जैसे मंगलवार और शनिवार को क्रूर माना गया है तो इस दिन भी तुलसी के पत्ते नहीं तोड़े जाते हैं वहीं रविवार के दिन तुलसी को जल देना निषेध किया गया है.
ऐसा माना जाता है कि रविवार के दिन ही तुलसी का विवाह शालिग्राम से हुआ था और वो अपने पति के लिए इसी दिन व्रत रखती हैं. ऐसे में इस दिन उन्हें जल नहीं चढ़ाना चाहिए. साथ ही ये माना जाता है कि विष्णु भगवान को तुलसी और रविवार का दिन दोनों प्रिय है और इस दिन उसमें जल नहीं पड़ना चाहिए. भगवान विष्णु को तुलसी प्रिय बनाने का श्रेय भगवान गणेश को जाता है. गणेश जी के वरदान से ही तुलसी कलयुग में भगवान विष्णु और कृष्ण जी की प्रिय बनी और जगत को जीवन और मोक्ष देने वाली भी बनी. जैसे रविवार के दिन तुलसी के पत्तों को तोड़ा नहीं जाता उसी प्रकार से गुरुवार के दिन तुलसी का पौधा लगाना चाहिए. साथ ही इसे घर के बाहर नहीं बल्कि आंगन के बीचों बीच लगाना शुभ माना जाता है. अगर आप कार्तिक महीने में तुलसी के पौधे को अपने घर में लगाते हैं तो इससे विशेष फल मिलता है.
विष्णु जी को तुलसी प्रिय बनाने के पीछे गणेश जी को माना जाता है. उनके वरदान से ही तुलसी को कलयुग में भगवान विष्णु और कृष्ण प्रिया बनने का मौका मिला साथ ही संपूर्ण जगत को मोक्ष देने का वरदान भी प्राप्त हुआ, लेकिन गणेश ने अपनी पूजा में तुलसी का प्रयोग निषेध रखा है. इस वजह से गणेश जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं होता है, जबकि विष्णु भगवान की पूजा में उनका प्रयोग सर्वोत्तम माना गया है.
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