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Maharana Pratap Jayanti 2020: स्वतंत्रता की प्रथम ज्योति प्रज्वलित करके भारत के गौरवशाली, अतीत की रक्षा के लिए एवं देशवासियों को दासता के जीवन से छुटकारा दिलाकर स्वाभिमान के लिए मर-मिटने का पाठ पढ़ाने वाले स्वतंत्रता देवी के अनन्य भक्त महाराणा प्रताप ने कहा था कि, ‘‘परतंत्र बनकर महलों में निवास और चांदी के पात्रों में भोजन करने से, कहीं अच्छा है जंगलों में भूमि शयन और फूल-फल पादपों और घास की रोटियां जिनमें स्वतंत्रता की सुगंध तो विद्यमान है।’’
इसी महान स्वतंत्र दीप से आलोकित हुआ छत्रपति शिवाजी का अंत:करण और अपने जीवन भर मराठा राज्य के लिए लड़ती रही महान वीरांगना झांसी की रानी ने भी इसी इतिहास को पढ़कर जीवन के अंतिम क्षणों तक ब्रिटिश हुकूमत से युद्ध किया और ब्रिटिश सरकार के जोर जुल्म के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं किया।
इसी प्रेरणा से ही प्रेरित होकर वर्तमान स्वतंत्रता के प्रणेता के रूप में सर्वप्रथम श्री खुदीराम बोस ने देश की बलिवेदी का नमन किया, फिर असंख्य देशभक्तों ने इस स्वतंत्रता की वेदी पर अपने को बलिदान करते हुए कहा, ‘‘सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुएं कातिल में है।’’
इस पंक्ति में रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, सरदार भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस आदि खड़े हैं। हम विस्मृत नहीं कर सकते बहादुरशाह जफर को जिनके शब्द थे कि, ‘‘बागियों में जब तलक ताकत है एक ईमान की, तख्त लंदन तक चलेगी तेग हिंदोस्तान की।’’