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धर्म-अध्यात्म
दूध से क्यों किया जाता है शिवलिंग का अभिषेक, जल अर्पित करते समय करें इस मंत्र का जाप
Tulsi Rao
25 July 2022 7:25 AM GMT
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Shivling Jalabhishek Direction: ज्योतिष शास्त्र में शिवलिंग पूजा को लेकर कई नियम बताए गए हैं. मान्यता है कि शिवलिंग पर दूध से रुद्राभिषेक करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. सोमवार के दिन दूध का दान कुंडली में चंद्रमा को मजबूत करता है. सावन माह में भगवान शिव का दूध डालकर जलाभिषेक का विशेष महत्व है. सभी लोग भगवान शिव का दूध से अभिषेक करते हैं. लेकिन शायद बहुत कम ही लोग इसके महत्व के बारे में जानते होंगे. आइए जानते हैं इस बारे में.
दूध से क्यों किया जाता है अभिषेक
सावन माह में और सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है. इस दिन दूध से अभिषेक करने का विशेष महत्व है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है. समुद्र मंथन के दौरान संसार को बचाने के लिए शिव जी मे विषपान कर लिया था. इससे उनका पूरा कंठ नीला हो गया था. भगवान शिव के विषपान करने से उसका प्रभाव शिव जी पर और जटा में बैठी गंगा मैं पर पड़ने लगा. ऐसे में सभी देवी-देवताओं ने शिव से दूध ग्रहण करने का आग्रह किया. दूध ग्रहण करते ही उनके शरीर में विष का प्रभाव कम होने लगा. तभी से शिव जी को दूध अर्पित करने की परंपरा है. हालांकि, इसके बाद ही शिव जी का पूरा गला नीला हो गया.
जलाभिषेक की सही दिशा
शिवपुराण में जलाभिषेक के कई नियमों के बारे में बताया गया है. अगर शिव जी का जलाभिषेक करते समय इन बातों का ध्यान न रखा जाए, तो पूजा का पूरा फल नहीं मिलता. शिवलिंगप र जलाभिषक या फिर रुद्राभिषेक करते समय दिशा का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए. शिव जी का जलाभिषेक करते समय गलती से भी पूर्व दिशा की ओर खड़ी नहीं हो. इस दिशा में शिवलिंग का मुख होना चाहिए. वहीं, कहते हैं कि पश्चिम दिशा की ओर मुख करके शिवलिंग पर जल अर्पित न करें. शिवलिंग पर जल अर्पित करते समय स्वंय दक्षिण दिशा की ओर मुख कर लें.
कहते हैं कि उत्तर दिशा देवी-देवताओं की दिशा होती है. इस दिशा में पूजा करने से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है. इस दिशा में मुख करके शिवलिंग की पूजा करने से मां पार्वती की कृपा भी प्राप्त होती है.
जल अर्पित करते समय करें इस मंत्र का जाप
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।
तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः । स्नानीयं जलं समर्पयामि।
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