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क्यों मानी जाती है शनिदेव की दृष्टि अशुभ, क्यों चलते हैं शनि धीमी चाल

हर माह के कृष्ण पक्ष की 15वीं तिथि को अमवास्या होती है। इस वर्ष वैशाख मास की अमावस्या बेहद ही विशेष है। शनिवार के दिन अमावस्या पड़ने की वजह से इसे शनि अमावस्या जाएगा। इसके अलावा इसे शनिश्चरि अमावस्या भी कहते हैं। शनिश्चरी अमावस्या के दिन ही साल 2022 का पहला सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। सूर्य ग्रहण के दौरान कई सारे ऐसे कार्य होते हैं, जिन्हें नहीं करना चाहिए। सभी नौ ग्रहों में सबसे धीमी चाल शनिदेव की होती है। यही कारण है कि किसी एक राशि में शनि ढाई साल तक रहता है। जिसे शनि की ढैय्या कहते हैं। शनिदेव आखिर इतनी धीमी चाल क्यों चलते हैं? शनिदेव की धीमी चाल के बारे में शास्त्रों बताया गया है। दरअसल शनिदेव की धीमी चाल का कनेक्शन रावण के क्रोध से है। जानते हैं शनिदेव की धीमी चाल के रहस्य के बारे में और साथ ही शनिदेव कि कुदृष्टि के बारे में।
शनिदेव की पत्नी ने दिया उन्हें श्राप
पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य पुत्र शनि का विवाह चित्ररथ नामक गंधर्व की पुत्री से हुआ था, जो स्वभाव से बहुत ही उग्र थी। एक बार जब शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण की आराधना कर रहे थे, तब उनकी पत्नी ऋतु स्नान के बाद मिलन की कामना से उनके पास पहुंची। शनि भगवान भक्ति में इतने लीन थे कि उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला। जब शनिदेव का ध्यान भंग हुआ तब तक उनकी पत्नी का ऋतुकाल समाप्त हो चुका था। इससे क्रोधित होकर शनिदेव की पत्नी ने उन्हें श्राप दे दिया कि पत्नी होने पर भी आपने मुझे कभी प्रेम की दृष्टि से नहीं देखा। अब आप जिसे भी देखेंगे, उसका कुछ न कुछ बुरा हो जाएगा। इसी कारण शनि की दृष्टि में दोष माना गया है।
इसलिए धीमी है शनि की चाल
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रावण ज्योतिष शास्त्र का बड़ा ज्ञाता था। जब मेघनाद अपनी माता के गर्भ में था तो मंदोदरी ने रावण से इच्छा जताई कि उसका नवजात ऐसे नक्षत्र में पैदा हो, जिससे की वह पराक्रमी, कुशल योद्धा और तेजस्वी बन सके।