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हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष जगन्नाथ यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू होकर आषाढ़ शुक्ल की दशमी तक चलती है. इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ विराजमान होते हैं और इनके साथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी होते हैं. भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पुरी के मंदिर से निकलते हुए गुंडिचा मंदिर जाती है. इस गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीनों ही आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तक रुकते हैं. फिर इसके बाद वापस अपने पुरी के मंदिर में वापस लौट आते हैं. इस रथ को देखने के लिए और भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद पाने के लिए देश-दुनिया से भक्त बड़ी संख्या में पुरी आते हैं. आज हम आपको बताने वाले हैं कि हर साल यह यात्रा क्यों निकाली जाती है और जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी कुछ चौकाने वाली बातें.
क्यों निकाली जाती है हर साल रथ यात्रा ?
हर साल आषाढ़ माह की द्वितीया से लेकर दशमी तिथि तक भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ यात्रा पर निकलते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण से उनकी बहन सुभद्रा ने द्वारका देखने की इच्छा प्रकट की. तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन की इस इच्छा को पूरा करने के लिए सुभद्रा और बलभद्र जी को रथ पर बैठाकर द्वारका की यात्रा करवाई थी. इस तरह से हर साल भगवान जगन्नाथ के संग बलभद्र और सुभद्रा की रथ यात्रा निकाली जाती है.
पुरी जगन्नाथ मंदिर से संबंधित कुछ चौंकाने वाले तथ्य –
1- मंदिर के ऊपर से नहीं उड़ते कोई भी पक्षी
पुरी के जगन्नाथ मंदिर के बारे में एक चौकाने वाली बात है कि इस मंदिर के ऊपर से कभी भी कोई पक्षी नहीं उड़ता हुआ दिखाई देता. इसके अलावा इसके ऊपर कोई भी हवाई जहाज नहीं गुजरता है.
2-नहीं पड़ती मंदिर के गुंबद की परछाई
भगवान जगन्नाथ के मंदिर का ऊपरी हिस्सा यानि गुंबद विज्ञान के इस नियम को चुनौती देता है, क्योंकि दिन के किसी भी समय इसकी परछाई नहीं बनती है.
3-यहां बहती है उल्टी हवा
समुद्री इलाकों में हवा का बहाव दिन के समय समुद्र से धरती की तरफ होता है जब कि शाम को उसका रुख बदल जाता है. हवा धरती से समुद्र की ओर बहने लगती है लेकिन यहां चमत्कार है कि हवा दिन में धरती से समुद्र की ओर व शाम को समुद्र से धरती की ओर बहती है.
4- मंदिर के अंदर नहीं आती है समुद्र की लहरों की आवाज
जगन्नाथ मंदिर में सिंह द्वार से प्रवेश करने पर आप समुद्र की लहरों की आवाज नहीं सुन सकते, लेकिन मंदिर से एक कदम बाहर आते ही लहरों की ध्वनि सुनाई देने लगती है, जो अपने आप में अजूबा है.
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