धर्म-अध्यात्म

गरुड़ पुराण से जाने की शव दाह के बाद लौटते समय पीछे मुड़कर क्यों नहीं देखना चाहिए

Tara Tandi
9 July 2021 8:29 AM GMT
गरुड़ पुराण से जाने की शव दाह के बाद लौटते समय पीछे मुड़कर क्यों नहीं देखना चाहिए
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गरुड़ पुराण को 18 महापुराणों में से एक माना जाता है. इसमें व्यक्ति को सदाचार, नीति, यज्ञ, जप, तप, वैराग्य आदि के बारे में बताया गया है,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | गरुड़ पुराण को 18 महापुराणों में से एक माना जाता है. इसमें व्यक्ति को सदाचार, नीति, यज्ञ, जप, तप, वैराग्य आदि के बारे में बताया गया है, साथ ही मृत्यु के नियम और ​मृत्यु के बाद की स्थितियों का भी जिक्र किया गया है. गरुड़ पुराण में दाह संस्कार के नियमों के बारे में भी बताया गया है और शव दाह करने के बाद पीछे मुड़कर न देखने की बात कही गई है. यहां जानिए इसके बारे में.

गरुड़ पुराण में कहा गया है कि व्यक्ति का शरीर नष्ट होने के बाद भी उसकी आत्मा नष्ट नहीं होती. व्यक्ति की मृत्यु के बाद वो आत्मा ही सूक्ष्म शरीर धारण करके अन्य लोकों में जाकर अपने पाप या पुण्य के कर्मों को भोगती है और समय आने पर दूसरा शरीर धारण कर लेती है. गरुड़ पुराण के मुताबिक मरने के बाद आत्मा अपने शरीर को भस्म होते अपनी आंखों से देखती है.
गरुड़ पुराण के अनुसार अपने शरीर के जलने के बाद भी आत्मा का मोह अपने अपने संबन्धियों के साथ खत्म नहीं होता और वो उनके पास फिर से उनके पास वापस जाना चाहती है. ऐसे में संबन्धियों के पीछे मुड़कर देखने से आत्मा को लगता है कि आपके अंदर अब भी उसके प्रति मोह बाकी है. ऐसे में आत्मा के लिए मोह बंधन से निकल पाना आसान नहीं होता. इसलिए शव दाह के बाद पीछे मुड़कर न देखकर उसे ये संदेश दिया जाता है कि अब उस आत्मा के मोह बंधन से मुक्त होने का समय आ गया है. इसलिए अब उसे अपने परिजनों का मोह छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए.
इसके अलावा एक मान्यता ये भी है कि अपना शरीर जलने के बाद भी आत्मा अपने परिजनों के पीछे पीछे वापस आती है और वो कोई शरीर पाना चाहती है. माना जाता है कि पीछे की ओर मुड़कर देखने पर आत्मा को आपका मोह उसके प्रति दिख जाता है और वो ऐसे व्यक्ति के शरी में प्रवेश कर जाती है और उन्हें सताने लगती है. ज्यादातर आत्मा बच्चों या कमजोर दिल वाले लोगों को पकड़ने का प्रयास करती है. इसलिए ऐसे लोगों को श्मशान से लौटते समय सबसे आगे रखना चाहिए.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)


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