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धर्म-अध्यात्म
भगवान शिव के गले में क्यों रहती है मुंडमाला...जाने इसके पीछे का महत्व
Subhi
22 Feb 2021 2:42 AM GMT
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देवों के देव महादेव की लीलाएं भी अपरमापर हैं. भगवान शिव की लीलाओं की तरह उनका रूप भी रहस्यमय माना जाता है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | देवों के देव महादेव की लीलाएं भी अपरमापर हैं. भगवान शिव की लीलाओं की तरह उनका रूप भी रहस्यमय माना जाता है. शिव अपने देह पर विभिन्न चीजों को धारण करते हैं. शिव के इस स्वरूप के खास मायने हैं. कहते है भोलेनाथ इतने भोले है कि भक्तों की श्रद्धा देखकर प्रसन्न हो जाते हैं. शिव त्रिशूल, नाग, चंद्रमा और मुंडमाला धारण करते हैं. जिस प्रकार शिव की जटाओं से गंगा निकली हैं. उसी तरह उनके गले में मौजूद मुंडमाला का अपना रहस्य है. आइए जानते हैं आखिर भगवान शिव ने क्यों धारण कि गले में मुडंमाला. क्या है पौराणिक रहस्य.
मुंडमाला का रहस्य
कहते है भगवान शिव ने मृत्यु को अपने वश में किया है. पुराणों के अनुसार, मुंडमाला शिव और सती के प्रेम का प्रतीक है. माता सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव कोध्रित होकर तांडव करने लगे थे. भोलनाथ स्वयं इस लीला के रचियता थे. उन्होंने पहले ही माता सती को इसकी जानकारी दी थीं. इसके बाद भगवान शिव ने सती को मुंडमाला पहनने का राज बताया था.
मुडंमाला में हैं 108 सिर
भगवान शिव के गले में 108 सिरों की माला हैं. एक बार नारद मुनि ने माता सती से कहा कि भोलेनाथ आपसे सबसे अधिक प्रेम करते हैं तो उनके गले में मुड़ों की माला क्यों रहती है. इसके बाद माता सती भगवान शिव से मुंडों के माला का राजा पूछने लगी. इसका जवाब देते हुए शिव ने कहा कि इस मुंडमाला में सभी सिर आपके ही है. यह आपका 108 वां जन्म है और आप 107 बार जन्म लेकर शरीर त्याग चुकी हैं.
मुंडमाला का रहस्य जानकर सती ने कहा मैं बार- बार देह त्यागती हूं लेकिन आप नहीं. इसके जवाब देते हुए शिव ने कहा क्योंकि मुझे अमरकथा का ज्ञान है. इसके बाद सती ने अमरकथा सुनने की इच्छा जताई. मान्यता है कि जब भोलनाथ सती को पूरी कथा सुना रहे थे तब सती पूरी कथा नहीं सुन पाईं और बीच में सो गईं. फलस्वरूप सती ने राजा दक्ष के अगनी कुंड में कूदकर जान दे दी थी.
पार्वती को हुईं अमरत्व की प्राप्ति
आत्मदाह करने के बाद भगवान शिव ने 51 पीठों का निर्माण किया, लेकिन शिव ने सती के मुंड को अपनी माला में गूंथ लिया. इस तरह भगवान शिव ने 108 मुंड़ की माला धारण कर ली. हालांकि बाद में सती का जन्म पार्वती के रूप में हुआ. इस जन्म में उन्हें अमरत्व की प्राप्ति हुई और फिर उन्हें शरीर नहीं त्यागना पड़ा.
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