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सनातन धर्म में दो संप्रदाय के अनुयायी हैं। एक शैव और दूसरा वैष्णव संप्रदाय है। शैव संप्रदाय के लोग शिवजी को मानते हैं। उनकी पूजा-उपासना करते हैं।
सनातन धर्म में दो संप्रदाय के अनुयायी हैं। एक शैव और दूसरा वैष्णव संप्रदाय है। शैव संप्रदाय के लोग शिवजी को मानते हैं। उनकी पूजा-उपासना करते हैं। दक्षिण भारत के कई राज्यों में शैव संप्रदाय के लोग हैं। वहीं, भगवान श्रीहरि विष्णु को मानने वाले वैष्णव संप्रदाय के लोग हैं। कालांतर से शिवजी के निमित्त पूजा, जप, तप और उपासना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि शिवजी बड़े भोले हैं और महज बिल्व पत्र, जल, दूध, अक्षत आदि चीजों को भेंट से प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि शिवजी को दूध क्यों चढ़ाया जाता है? अगर नहीं पता है, तो आइए जानते हैं-
क्या है कथा
चिरकाल में जब राजा बलि तीनों लोकों के स्वामी बन गए थे। उस समय स्वर्ग के देवता इंद्र सहित सभी देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों ने भगवान विष्णु जी से तीनों लोकों की रक्षा के लिए याचना की। तब भगवान विष्णु जी ने उन्हें समुद्र मंथन करने की युक्ति दी। भगवान नारायण ने कहा कि समुद्र मंथन से अमृत की प्राप्ति होगी, जिसके पान से आप देवता अमर हो जाएंगे। कालांतर में क्षीर सागर में वासुकी नाग और मंदार पर्वत की सहायता से समुद्र मंथन किया गया। इस मंथन से 14 रत्न, विष और अमृत प्राप्त हुए थे।
जब समुद्र मंथन से विष निकला तो देवताओं और राक्षसों में हाहाकार मच गया कि कौन विष पिएगा। उस समय भगवान शिव जी ने तीनों लोकों की रक्षा हेतु विष पान किया था। जब भगवान शिवजी विष पान कर रहे थे, तो माता पार्वती शिवजी का गला दबाकर रखी थी। इस वजह से विष गले से नीचे नहीं आ सका। किंतु विष पान के चलते भगवान शिवजी के गले में जलन होने लगा। उस समय देवताओं ने उन्हें दूध पीने के लिए दिया। जब भगवान शिवजी ने दूध का पान किया, तो उन्हें आराम मिला। तभी से भगवान शिवजी को दूध चढ़ाने की प्रथा है।
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