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भारत में कई तरह के धार्मिक पर्व, त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं। इन्हीं उत्सवों में से एक है गुड़ी पड़वा। तिथि के आधार पर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा एक ऐसा पर्व है, जिसकी शुरुआत के साथ सनातन धर्म में कई सारी कहानियां जुड़ी हैं। हिंदी कैलेंडर के अनुसार, गुड़ी पड़वा के दिन से ही चैत्र नवरात्रि का भी प्रारंभ होता है। साथ ही इसे हिंदू नववर्ष की शुरुआत भी माना जाता है। गुड़ी पड़वा को उगादी और संवत्सर पडवो भी कहते हैं। मुख्यतः दक्षिण भारत में इस पर्व को उगादी नाम से जाना जाता है। गुड़ी पड़वा को महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा और आंध्र प्रदेश में मुख्य रूप से मनाया जाता है। इन राज्यों में लोग गुड़ी पड़वा को नए साल के पहले दिन के रूप में मनाते हैं। तो चलिए आज जानते हैं गुड़ी पड़वा यानी हिंदू नववर्ष का महत्व और इसका पौराणिक इतिहास...
क्यों मनाया जाता है गुड़ी पड़वा का पर्व
चैत्र मास प्रारंभ होते ही हिंदू नववर्ष यानी विक्रम संवत की शुरुआत हो जाती है। वैसे तो हिंदू नव वर्ष बहुत प्राचीन काल से चलता आ रहा है, लेकिन कहा जाता है कि करीब 2057 ईसा पूर्व विश्व सम्राट विक्रमादित्य ने नए सिरे से इसे स्थापित किया, जिसे विक्रम संवत कहा जाता है। इस विक्रम संवत को पूर्व में भारतीय संवत का कैलेंडर भी कहा जाता था, लेकिन बाद में इसे हिंदू संवत का कैलेंडर के रूप में प्रचारित किया गया।
आज भी इस हिंदू नव वर्ष को हर प्रदेश में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाड़ी, चेटीचंड ,चित्रैय,तिरूविजा, इन सभी की तिथि संवत्सर के आसपास ही पड़ती है। हालांकि मूल रूप से इसे नव संवत्सर और विक्रम संवत कहा जाता है।
कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के काल में भारतीय वैज्ञानिकों ने हिंदू पंचांग के आधार पर भारतीय कैलेंडर बनाई थी। इस कैलेंडर की शुरुआत हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से मानी जाती है। इसे नव संवत्सर भी कहा जाता है। संवत्सर के पांच प्रकार हैं सौर, चंद्र, नक्षत्र ,सावन और अधिमास। वहीं विक्रम संवत में इन सभी का समावेश है। विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसवी पूर्व में हुई। इसको शुरू करने वाले सम्राट विक्रमादित्य थे इसीलिए उनके नाम पर ही इस संवत का नाम है।
हिन्दू नववर्ष यानी गुड़ी पड़वा से जुड़ी खास बातें
ब्रह्मा पुराण अनुसार, गुड़ी पड़वा के दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। साथ ही ये भी मान्यता है कि इसी दिन से सतयुग की शुरुआत हुई थी।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, गुड़ी पड़वा के दिन प्रभु श्रीराम ने बालि का वध कर दक्षिण भारत में रहने वाले लोगों को उसके आतंक से मुक्त करवाया था। इसके बाद यहां की प्रजा ने खुश होकर अपने घरों में विजय पताका फहराई थी, जिसे गुड़ी कहा जाता है।
कब है गुड़ी पड़वा ?
पंचांग के अनुसार, 01 अप्रैल शुक्रवार को दिन में 11 बजकर 53 मिनट से से चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि शुरु हो रही है। ये तिथि अगले दिन 02 अप्रैल शनिवार को 11 बजकर 58 मिनट तक है। ऐसे में इस साल गुड़ी पड़वा 02 अप्रैल को मनाया जाएगा।