धर्म-अध्यात्म

पूजा में क्यों जरूरी होता है आसन, जाने

Subhi
8 Oct 2022 3:52 AM GMT
पूजा में क्यों जरूरी होता है आसन, जाने
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घर हो या मंदिर कहीं भी पूजा करते समय आसन बहुत जरूरी होता है. धार्मिक कार्यों में जाप, पूजा के दौरान आसन का प्रयोग सदियों से चला आ रहा है. आसन का प्रयोग न केवल घर में, अपितु किसी देव मंदिर में पूजा, जाप करने जाएं तो भी करना चाहिए. बिना आसन बिछाए पूजा करने से न केवल हमारी मनोकामनाएं अधूरी रहती हैं, बल्कि दुख की प्राप्ति और मन, घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है. शास्त्रों में आसन का विस्तार से उल्लेख किया गया हैं.

पूजा में वर्जित है इन आसनों का प्रयोग

बिना आसन बिछाए उपासना करना कभी फलित नही होता है. आजकल मार्केट में तमाम तरह के रंग-बिरंगे और डिजाइनर आसन बिकने लगे हैं, जिन्हें लोग घर पर पूजा करने के लिए खरीदकर ले भी आते हैं, किंतु किसी भी आसान पर बैठकर पूजा करना फलीभूत नहीं होता है. ऐसे में यह जानना बहुत जरूरी है कि किस आसन पर बैठकर पूजा करनी चाहिए और किस पर नहीं बैठना है.

1- बांस के आसन पर बैठकर पूजा करने से साधक को आर्थिक तंगी और दरिद्रता की समस्या का सामना करना पड़ता है.

2- घास एवं तिनके से बने आसन का प्रयोग करने से यश, कीर्ति नष्ट हो जाती है और आपकी छवि धूमिल होती है.

3- पत्थर की चौकी पर बैठकर पूजा करने से रोग, दुख और दुर्भाग्य आता है तथा आर्थिक उन्नति में बाधा पहुंचती है.

4- पत्तियों से बने आसन पर पूजा करने से कारोबार में उन्नति नहीं हो पाती है और चीजें लंबे समय तक नहीं चलती हैं.

5- लकड़ी के आसन पर बैठकर पूजा करने से दुख व अशांति की प्राप्ति होती है.

6- कपड़े को आसन बनाकर बैठने से चिंताएं एवं बाधाएं आती हैं.

आसन प्रयोग के नियम

जब आप आसन पर बैठकर पूजा और जाप करते हैं, तब अंदर आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह और सकारात्मक ऊर्जा का संचय होता है. आसन की मुख्य उपयोगिता है कि पैर जमीन से टच न हों. शास्त्रों में रेशम, कंबल, काष्ठ, ताम्रपत्र और मृग चर्म से बने हुए आसन के प्रयोग के लिए बताया गया है. परंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस तरह के आसन का प्रयोग करना संभव नहीं है.

ब्रह्म पुराण में बताया गया है कि कुशा के आसन का प्रयोग करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है. कुशा का संबंध केतु से है. दूसरा आप कंबल का आसन बनाकर भी जाप कर सकते हैं. जब भी कोई व्यक्ति पहली बार पूजा या जाप की शुरुआत करें, उसका आसन अलग होना चाहिए. दूसरे के आसन का प्रयोग करने पर दोष लगता है. सबसे पहले मंत्रों द्वारा आसन को शुद्ध किया जाना चाहिए. जब भी पूजा करने जाएं, अपना आसन उठाकर शीश से लगाए. पूजा करने के बाद आसन को लपेटकर यथास्थान आदर के साथ रखें. आप आसन का जितना सम्मान करेंगे, आपकी उतनी ही इच्छाएं पूरी होंगी.


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