धर्म-अध्यात्म

पूजा के दौरान क्यों किया जाता है गेंदे के फूल का इस्तमाल, जानें इतिहास और महत्व

Tulsi Rao
16 May 2022 8:11 AM GMT
पूजा के दौरान क्यों किया जाता है गेंदे के फूल का इस्तमाल, जानें इतिहास और महत्व
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सनातन धर्म में देवी-देवताओं को पूजा के समय पुष्प अर्पित करने का विधान है. भगवान की पूजा में सबसे अधिक गेंदे के फूल चढ़ाए जाते हैं. इन फूलों को ना सिर्फ भगवान की पूजा में अर्पित किया जाता है बल्कि इनका उपयोग घर की सजावट और अधिकतम शुभ काम में भी किया जाता है. क्या आपने कभी सोचा है कि पूजा, तीज-त्योहारों पर सबसे अधिक गेंदे के फूल का उपयोग ही क्यों किया जाता है? केसरिया रंग लिए बेहद खूबसूरत दिखने वाला ये फूल हर देवी-देवता को प्रिय है. इसका केसरिया रंग हिंदू धर्म से जुड़ा है. केसरिया रंग त्याग और मोह-माया को भी दर्शाता है. एक बीज अपने में अनेक पत्तियों को जोड़े रखता है. जो एकता का प्रतीक भी माना जाता है. भोपाल के रहने वाले पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा, ज्योतिष बताते हैं कि गेंदे के फूल क्यों इतने महत्वपूर्ण हैं.

गेंदा ही एकमात्र ऐसा फूल है जो अपनी पत्तियों से अंकुरित हो जाता है. ये फूल एक आत्मा की खासियत को भी दर्शाता है. जिस तरह आत्मा कभी नहीं मरती उसी तरह इसकी हर एक पत्ती अपने आप में जीवंत होती है.
गेंदे के फूलों को वंदनवार और तोरण के रूप में दरवाजे पर लगाना शुभ माना जाता है. मान्यता के अनुसार यह फूल नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है. यही वजह है कि इस फूल का उपयोग तीज त्यौहार पर अधिक किया जाता है. इस फूल को मुख्य दरवाजे पर लटकाने से बुरी शक्तियां दूर रहती हैं.
शास्त्रों में देवी देवताओं को पवित्र वस्तु चढ़ाने का ही विधान बताया गया है. गेंदे का फूल बेहद पवित्र फूल माना जाता है. यही वजह है कि पूजा पाठ में सबसे अधिक गेंदे के फूल ही चढ़ाए जाते हैं.
इन बातों का रखें विशेष ध्यान
पंडित जी के अनुसार देवी-देवताओं को हमेशा साफ पत्तियों वाला फूल ही चढ़ाना चाहिए. गंदा गेंदे का फूल चढ़ाने से भगवान नाराज़ हो जाते हैं.
भगवान को हमेशा ताजा ही गेंदे का फूल अर्पित करना चाहिए. पुराना या बासा फूल चढ़ाने से बचना चाहिए.
हमेशा देवी देवता को नए फूल ही अर्पित करना चाहिए. कभी भी एक बार उपयोग में किया गया फूल किसी अन्य देवी-देवता को नहीं चढ़ाना चाहिए.
ध्यान रहे नीचे गिरे हुए गेंदे के फूल का इस्तेमाल किसी भी धार्मिक कार्य में करने से बचना चाहिए.


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