धर्म-अध्यात्म

जगन्नाथ भगवान को क्यों लगाया जाता है खिचड़ी का भोग, जानिए यह रोचक कहानी

Kunti Dhruw
12 July 2021 2:41 PM GMT
जगन्नाथ भगवान को क्यों लगाया जाता है खिचड़ी का भोग, जानिए यह रोचक कहानी
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हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पुरी के जगन्नाथ मंदिर में रथयात्रा निकलती है।

हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पुरी के जगन्नाथ मंदिर में रथयात्रा निकलती है। रथयात्रा का यह सालाना उत्सव 9 दिनों तक चलता है। रथयात्रा के पहले दिन भगवान के रथ को 5 किमी तक खींचा जाता है और यह रथ गुंडीचा मंदिर तक पहुंचाया जाता है, जो भगवान कृष्ण की मौसी का मंदिर है। वहीं जगन्नाथ भगवान 8 दिन तक मौसी के यहां रहते हैं और 9वें दिन यानी देवशयनी एकादशी से एक दिन पहले आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भगवान जगन्नाथ मंदिर में वापस आ जाते हैं। इस रथयात्रा को देखने के लिए न केवल देश से बल्कि विदेशों से भी भक्तजन आते थे लेकिन कोविड-19 के नियमों के तहत कुछ ही लोगों को इस बार रथयात्रा में मंजूरी मिली है।

भोग लगाना कभी नहीं भूलती थीं कर्मा बाई
अगर आप जगन्नाथ मंदिर गए हैं तो आपने देखा होगा कि वहां सबसे पहले खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। दरअसल इसके पीछे एक कथा बताई जाती है। बताया जाता है कि भगवान जगन्नाथ की एक परम उपासक भक्त थीं कर्मा बाई, जो भगवान को अपना पुत्र मानती थीं और उसी तरह उनसे स्नेह भी करती थीं। कर्मा बाई काफी वृद्ध महिला थीं लेकिन हर रोज भगवान जगन्नाथ का भोग लगाना नहीं भूलती थीं। एक बार कर्मा बाई के मन में आया क्यों न एक बार अपने हाथों से भगवान जगन्नाथ को भोग लगाया जाए लेकिन उनके मन में शंका भी थी कि क्या वह उनको पसंद आएगा भी या नहीं।
भगवान ने जान ली कर्मा बाई के मन की इच्छा
भगवान जगन्नाथ कर्मा बाई की मन इच्छा को जान गए और वह एक दिन सुबह-सुबह उनके घर चले गए और बोला कि मुझे बहुत तेज भूख लगी है इसलिए कुछ जल्दी से बनाकर दे दीजिए। तब जाकर उन्होंने झटपट से खिचड़ी बना दी क्योंकि उसको बनाने में ज्यादा समय नहीं लगता। कर्मा बाई ने भगवान को खिचड़ी परोस दी और खुद पंखा करने लगीं। भगवान बड़े चाव से खिचड़ी खाने लगे और कर्मा बाई से कहा कि मुझे यह बहुत पंसद आई है अब से वे रोज खिचड़ी खाने आएंगे। भगवान जगन्नाथ की बात सुनकर कर्मा बाई बहुत प्रसन्न हुई। उस दिन के बाद से कर्मा बाई हर रोज जल्दी खिचड़ी बना देतीं और भगवान भी खिचड़ी खाने आ जाते और कपाट खुलने से पहले मंदिर वापस चले जाते।
महात्मा ने बताए भोग लगाने के नियम
एक दिन जब कर्मा बाई खिचड़ी बना रही थीं तब एक महात्मा ने देखा कि कर्मा बाई बिना स्नान और रसोई साफ किए बिना खिचड़ी बना रही हैं। तब महात्मा ने कर्मा बाई को समझाया कि ऐसा करना गलत है। अगर प्रभु के लिए भोग बना रही हैं तो स्नान करके और साफ-सफाई के साथ नियमों का पालन करते हुए भोजन तैयार करें। महात्मा की बात कर्मा बाई को समझ में आ गई। अगर दिन भगवान जगन्नाथ कर्मा बाई के यहां पहुंचे और खिचड़ी का इंतजार करने लगे क्योंकि कर्मा बाई स्नान व साफ-सफाई पर ध्यान दे रही थीं और नियमों के तहत भोजन तैयार कर रही थीं। ऐसे में भगवान ने जल्दी जल्दी खिचड़ी खाई और बिना मुंह धोकर चले गए क्योंकि कपाट खुलने का समय हो चुका था।
महात्मा ने कर्मा बाई से मांगी माफी
मंदिर के पुजारी ने कपाट खोलते हुए देखा कि भगवान जगन्नाथ के मुंह पर खिचड़ी लगी हुई है। जब पुजारी ने भगवान से इसकी वजह जानीं तो भगवान ने सब कुछ बता दिया और कहा कि भगवान तो केवल भाव के भूखे हैं। अगर सच्चे मन से भक्त केवल पत्तों का भोग लगाया तो उसका स्वाद सोने-चांदी की थालियों में लगे भोग से ज्यादा होगा। जो स्वाद भक्त के भाव में होता है, वह 56 भोग से कहीं ज्यादा होता है। जब यह बात महात्मा को पता चली तो उसको बहुत अफसोस हुआ और उसने कर्मा बाई से माफी भी मांगी और कहा कि जैसा तुम भोग लगाना चाहती हो, वैसे ही लगाओ। महात्मा ने कहा कि भगवान को तो केवल आस्था व श्रद्धा चाहिए। इससे बढ़कर कोई और नियम नहीं है, ईश्वर को प्राप्त करने के लिए।
इस तरह शुरू हुआ खिचड़ी का भोग
कुछ दिन बाद कर्मा बाई ने शरीर को त्याग दिया। उस दिन पुजारी ने मंदिर के कपाट खोले तो देखा भगवान जगन्नाथ की आंखों से आंसू हैं। पुजारी ने पूछा भगवान आखिर हुआ क्या है, आप रो क्यों रहे हैं। तब भगवान जगन्नाथ ने पुजारी से कहा कि आज मेरी मां कर्मा बाई इस लोक को छोड़कर मेरे लोक में आ गई हैं। अब मुझे खिचड़ी कौन खिलाएगा। जिस प्रेम से खिचड़ी बनाती और मुझे खिलाती थीं, अब ऐसा कौन करेगा? तब पुजारी ने कहा कि हे प्रभु, हम आपको आपकी मां की कमी को महसूस नहीं होने देंगे। आज के बाद से आपके लिए सबसे पहले खिचड़ी का ही भोग लगाया जाएगा। इसके बाद से भगवान जगन्नाथ के लिए हर रोज खिचड़ी बनाई जाती है और उनका भोग लगाया जाता है।


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