धर्म-अध्यात्म

बजरंग बली को क्यों कहा जाता है हनुमान...जाने इसके पीछे की पौराणिक कथा

Subhi
19 Jan 2021 2:50 AM GMT
बजरंग बली को क्यों कहा जाता है हनुमान...जाने इसके पीछे की पौराणिक कथा
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हनुमान बाबा को लेकर मान्यता है कि वे आज भी हम सब के बीच मौजूद हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | हनुमान बाबा को लेकर मान्यता है कि वे आज भी हम सब के बीच मौजूद हैं. असीम शक्तियों के स्वामी हनुमान जी को जो भी भक्त सच्चे दिल से याद करता है, वे हर हाल में उसकी मदद करते हैं. हनुमान जी भगवान शिव के 11वें अवतार हैं. संसार में उन्हें बजरंगबली, संकटमोचन, महावीर जैसे तमाम नामों से पुकारा जाता है. लेकिन उनका सर्वाधिक लोकप्रिय नाम हनुमान है. क्या आप जानते हैं कि उनका ये नाम कैसे पड़ा ? अगर नहीं तो आज हम आपको बताते हैं हनुमान बाबा से जुड़ी कुछ ऐसी बातें जिनके बारे में हो सकता है आप न जानते हों.

इसलिए नाम पड़ा हनुमान
हनुमान नाम पड़ने के पीछे एक कथा प्रचलित है. जन्म लेने के बाद हनुमान बाबा को भूख लगी तो वे इधर उधर चीजें ढूंढने लगे. उसी समय उन्हें आकाश में सूर्य देव दिखाई दिए तो उन्होंने सोचा ये तो बहुत बड़ा फल है, क्यों न इसे ही खाया जाए. ये सोचकर वे सूर्य को खाने के लिए आगे बढ़े. उसी दिन राहू भी सूर्य को अपना ग्रास बनाने के लिये आया हुआ था. लेकिन हनुमान जी को देखकर वो घबरा गया. तभी इंद्र ने पवनपुत्र पर वज्र से प्रहार किया जिससे उनकी ठोड़ी पर चोट लग गई. चोट लगने से ठोड़ी में टेढ़ापन आ गया. हनु यानी ठोड़ी पर चोट लगने के कारण महादेव ने उन्हें हनुमान नाम दिया.

हनुमान जी के भक्तों को नहीं सताते शनिदेव
कहा जाता है कि अगर आप हनुमान बाबा के भक्त हैं तो शनिदेव आपको कभी भी परेशान नहीं करेंगे. इसके पीछे भी एक कहानी प्रचलित है. पौराणिक कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी ने शनिदेव को अपने सिर पर हिमालय रखकर दबा लिया था. तब शनिदेव ने उनसे माफी मांगी. हनुमान जी ने उन्हें जब मुक्त किया तो देखा कि उनके तमाम चोटें आई हैं. उन्होंने घाव भरने के लिए शनिदेव पर सरसों का तेल चढ़ाया. सरसों के तेल से शनिदेव को काफी ठंडक महसूस हुई और आराम मिला. तब शनिदेव प्रसन्न हुए और उन्होंने हनुमान बाबा से कहा कि अब से जो भी हनुमान जी की पूजा करेगा, उस पर शनि की भी कृपा रहेगी. साथ ही अगर कोई हनुमान जी और शनिदेव के समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएगा तो उसकी बड़ी से बड़ी विपत्तियां भी टल जाएंगीं.



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