- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- रथयात्रा में आखिर...
धर्म-अध्यात्म
रथयात्रा में आखिर भगवान जगन्नाथ के साथ राधा व रुक्मिणी क्यों नहीं होतीं ? जानिए
Deepa Sahu
15 July 2021 11:56 AM GMT
x
जगन्नाथ पुरी रथयात्रा में इसलिए नहीं होती राधा व रुक्मिणी
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सनातन धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का संस्कृति और सभ्यता का अनूठा पर्व मनाया जाता है। 9 दिन तक चलने वाले इस उत्सव की शुरुआत आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि से शुरू हो चुका है। जगन्नाथ भगवान का रथ गुंडिचा मंदिर तक पहुंचाया जाता है, जो उनकी मौसी का घर है। यहां वह 8 दिन तक रहते हैं और 9वें दिन यानी दशमी तिथि को जगन्नाथ मंदिर वापस आ जाते हैं। इस रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई बलराम और उनकी बहन सुभद्रा होती हैं, जहां वे नगर भ्रमण पर निकलते हैं। आपने ज्यादातर मंदिरों में भगवान कृष्ण के साथ राधा या रुक्मिणी को देखा होगा। मगर कभी आपने सोचा है कि इस रथयात्रा में आखिर भगवान जगन्नाथ के साथ राधा व रुक्मिणी क्यों नहीं होतीं। आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी…
भगवान कृष्ण कहने लगे राधा-राधा
पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापर युग के समय द्वारका नगरी एक बार भगवान कृष्ण अपने महल में सो रहे थे और उनके पास में ही रुक्मिणी भी थीं। रात के स्वप्न में भगवान कृष्ण अचानक से राधा-राधा नाम पुकारने लगे। यह देखकर देवी रुक्मिणी काफी चकित हो गईं और सोच में पड़ गईं आखिर भगवान कृष्ण अचानक से राधा-राधा नाम क्यों पुकार रहे हैं।
देवी रुक्मिणी ने जानना चाहा यह रहस्य
देवी रुक्मिणी ने यह बात अन्य पटरानियों से कही और बोलीं कि आखिर हमारी इतनी भक्ति सेवा और त्याग के बाद भी श्रीकृष्ण के मुख से हमारे नाम के बजाय राधा का नाम क्यों निकला। कृष्ण आखिर गोप कुमारी राधा को क्यों नहीं भुला पाए। देवी रुक्मिणी अन्य पटरानियों के साथ यह रहस्य जानने के लिए माता रोहिणी के पास पहुंची और उनको पूरी घटना के बारे में जानकारी दी।
माता रोहिणी ने रखी यह शर्त
माता रोहिणी को भगवान कृष्ण और राधा की लीलाओं के बारे में पूरी जानकारी थी लेकिन फिर भी वह बातों को टालमटोल करने लगीं। लेकिन देवी रुक्मिणी और अन्य पटरानियों की बार-बार विनती करने पर वह मान गईं। तब उन्होंने कहा कि पहले द्वार पर सुभद्रा को बिठा दो ताकि कृष्ण, बलराम या फिर अन्य कोई व्यक्ति अंदर न आ जाए। इसके बाद माता रोहिणी ने कृष्ण-राधा की लीलाओं के बारे में बताना शुरू कर दिया।
सभी राधा-कृष्ण की लीला को करने लगे याद
कुछ समय बाद सुभद्रा ने देखा कि उनके भाई बलराम और कृष्ण माता के कमरे की ओर चले आ रहे हैं। तब सुभद्रा ने किसी बहाने से उनको कमरे के अंदर जाने से रोक दिया लेकिन कमरे के दरवाजे पर भी श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा को कृष्ण-राधा की रासलीला का प्रसंग सुनाई दे रहा था। राधा-कृष्ण के अद्भुत प्रेम व भक्ति भावना को सुनकर तीनों को आनंद आने लगा और उनकी रास लीलाओं को याद करने लगे।
कृष्ण में नजर आई राधारानी की छवि
कृष्ण व बलराम के अंग-अंग में अद्भुत प्रेम रस का उद्भव होने लगा और उनकी बहन सुभद्रा भी विह्वल होने लगीं। इस अवस्था में पहुंचने के बाद उनके शरीर गलने लगे और उनके हाथ-पैर अद्श्य हो गए। वहीं भगवान कृष्ण में राधा की छवि साफ नजर आने लगी। जैसे दो आत्माएं एक शरीर में रह रही हों। यह भी कहा जाता है कि राधा-कृष्ण के प्रसंग को सुनकर सुदर्शन चक्र भी गलकर लंबे आकार में हो गया। यह गोप कुमारी राधा के महाभाव का ही प्रभाव थो, जो उस समय गौरवपूर्ण दृश्य बन रहा था।
नारद ने अलौकिक स्वरूप के दर्शन किए
इसी दौरान नारद मुनि वहां से गुजर रहे थे और उन्होंने तीनों भाई-बहन के अलौकिक स्वरूप के दर्शन कर अभिभूत हो गए। साथ में कृष्ण के अंदर नजर आ रहीं राधा रानी को भी प्रणाम किया। लेकिन तीनों नारद को देखकर अपने मूल स्वरूप में वापस आ गए कि नारदजी ने इस दृश्य को न देखा हो। लेकिन नारद मुनि ने तीनों से प्रार्थना की कि जिस तरह मैंने आपके इस स्वरूप के दर्शन किए हैं, उसी स्वरूप में सभी भक्त आपके दर्शन करें।
Next Story