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धर्म-अध्यात्म
मां दुर्गा क्यों करती हैं शेर की सवारी, जानिए क्या है रहस्य?
Deepa Sahu
20 April 2021 11:51 AM GMT
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नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क: नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। हर स्वरूप का अपना महत्व और अपनी कथा है। नवरात्र के दिनों मां दुर्गा से जुड़ी कथा और जानकारियों के बारे में काफी सुनने और देखने को मिलती हैं। आज इसी क्रम में हम आपको मां दुर्गा की सवारी सिंह के बारे में बताने जा रहे हैं। यूं तो मां दुर्गा के कई रूप हैं और उन स्वरूपों में मां के अलग-अलग वाहन भी है लेकिन सिंह उनका प्रमुख वाहन है। आखिर मां दुर्गा सिंह की सवारी क्यों करती हैं और इसके पीछे की कथा क्या है…
माता पार्वती को चुभ गई भगवान शिव की बात
मां दुर्गा की सिंह की सवारी को लेकर कई कथाएं आती हैं। इनमें सबसे ज्यादा प्रचलित कथा के अनुसार, माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कई वर्षों तक तपस्या की। तपस्या देवी का रंग सांवला हो गया था। एक दिन माता पार्वती और भगवान शिव कैलाश पर्वत पर बैठकर हंसी-मजाक कर रहे थे। तभी भगवान शिव ने माता पार्वती से मजाक में काली कह दिया। देवी पार्वती को शिवजी की यह बात चुभ गई और वह कैलाश छोड़कर फिर से तपस्या करने में लीन हो गईं। इस बीच एक भूखा सिंह देवी को खाने की इच्छा से वहां पहुंचा लेकिन तपस्या में लीन देवी को देखकर वह चुपचाप बैठा रहा।
सिंह ने की माता पार्वती के साथ तपस्या
सिंह सोचने लगा जब देवी तपस्या से उठ जाएंगी तो वह उनको अपना आहार बना लेगा। इस बीच कई साल बीत गए लेकिन सिंह अपनी जगह से नहीं उठा और वह भी भूखा-प्यासा बैठा रहा। देवी पार्वती की तपस्या पूरी होने के बाद भगवान शिव प्रकट हुए और माता पार्वती को गौरवर्ण यानी गौरी होने का वरदान दे दिया। इसके बाद माता पार्वती गंगा स्नान के लिए गईं तो उनके शरीर से एक सांवली देवी प्रकट हुईं, जो कौशिकी कहलाईं और गौरवर्ण हो जाने के कारण देवी पार्वती महागौरी कहलाने लगीं।
सिंह को मिला तपस्या का फल
देवी पार्वती ने देखा कि सिंह भी उनके साथ तपस्या में भूखा-प्यासा बैठा रहा, ऐसे में उन्होंने सिंह को अपना वाहन बना लिया। इसका कारण यह था कि वर्षों तक देवी को खाने के इंतजार में वह उन पर नजर टिकाए रखा और भूखा-प्यास मां का ध्यान करता रहा। देवी ने इसे सिंह तपस्या मान लिया और अपनी सेवा में ले लिया, इस तरह वह शेरोंवाली के नाम से भी कहीं जाने लगीं। इसलिए माता पार्वती के सिंह और वृष दोनों वाहन माने जाते हैं।
मिलती है एक और कथा
दूसरी पौराणिक कथा स्कंद पुराण में मिलती है। इसके अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने देवासुर संग्राम में दानव तारक और उसके दो भाई सिंहमुखम और सुरापदमन नामक असुरों को पराजित कर दिया था। सिंहमुखम ने कार्तिकेय के आगे माफी मांगी, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने उसे शेर बना दिया और मां दुर्गा का वाहन बनने का भी आशीर्वाद दे दिया।
देवी मां के अलग-अलग वाहन
देवी अपने सभी स्वरूपों में अलग-अलग वाहन पर विराजमान हैं। देवी दुर्गा सिंह पर सवार दिेखती हैं तो माता पार्वती शेर पर। पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है इसलिए वे स्कंद माता के नाम से भी जानी जाती हैं, जिनको सिंह पर सवार दिखाया गया है। वहीं कात्यायनी देवी जिन्होंने महिषासुर का वध किया था, उनका वाहन सिंह है। देवी कुष्मांडा और माता चंद्रघंटा शेर पर सवार हैं। वहीं जिनकी नवरात्र के प्रतिपदा और अष्टमी तिथि शैलपुत्री और महागौरी वृषभ वाहन पर सवारी करती हैं। माता कालरात्रि गधा की सवारी करती हैं तो माता सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं।
Deepa Sahu
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