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धर्म-अध्यात्म
रंगभरी एकदशी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा क्यों करते हैं?
Kajal Dubey
8 March 2022 4:20 AM GMT

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हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी मनाते हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। रंगभरी एकादशी, एक मात्र ऐसी एकादशी है, जिस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की पूजा के अलावा भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा करते हैं. हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी मनाते हैं. रंगभरी एकादशी को आंवला एकादशी (Amla Ekadashi) भी कहते हैं. इस साल रंगभरी एकादशी 14 मार्च दिन सोमवार को है. इस दिन सोमवार, सर्वार्थ सिद्धि योग और पुष्य नक्षत्र का सुंदर संयोग बना है. रंगभरी एकादशी पर सर्वार्थ सिद्धि योग प्रात: 06 बजकर 32 मिनट से बन रहा है, ऐसे में आप इस योग में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करके अपनी मनोकामनाएं सिद्ध कर सकते हैं. आइए जानते हैं कि रंगभरी एकदशी के दिन भगवान शिव (Lord Shiva) और माता पार्वती (Mata Parvati) की पूजा क्यों करते हैं?
रंगभरी एकदशी 2022 शिव-पार्वती पूजा
14 मार्च को रंगभरी एकदशी पर शिव-पार्वती की पूजा की जाएगी. रंगभरी एकदशी के अवसर पर वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन भगवान शिव रंग गुलाल से सराबोर रहते हैं. काशी के राजा बाबा विश्वनाथ माता गौरा संग पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं. इस दिन शिव भक्त भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का स्वागत लाल गुलाबी गुलाल से करते हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रंगभरी एकदशी के दिन ही भगवान शिव माता पार्वती को पहली बार अपनी नगरी काशी में लेकर आए थे. कहा जाता है कि माता पार्वती से ब्याह के बाद पहली बार शिव जी गौना कराकर माता गौरा संग काशी नगरी आए थे. तब शिव गणों और भक्तों ने उनका स्वागत रंग गुलाल से किया था, क्योंकि उस समय फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी. पूरी शिव नगरी रंग गुलाल से भर गई थी. चारों ओर खुशहाली और उत्सव था. इस वजह से यह दिन रंगभरी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गया.
हर साल रंगभरी एकादशी पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है और पूरे नगर में शिव बारात निकाली जाती है. भगवान शिव माता गौरा को नगर भ्रमण कराते हैं. इस दौरान पूरी काशी हर हर महादेव के नारों से गूंज उठती है.

Kajal Dubey
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