- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- क्यों वर-वधू पहनाते...
धर्म-अध्यात्म
क्यों वर-वधू पहनाते हैं वरमाला? जानिए शादी से जुड़ी तमाम रस्मों के मायने
Rani Sahu
11 May 2022 6:47 PM GMT
x
हिंदू धर्म (Hindu Religion) में शादी की रस्मों का सिलसिला काफी दिन पहले से शुरू हो जाता है
हिंदू धर्म (Hindu Religion) में शादी की रस्मों का सिलसिला काफी दिन पहले से शुरू हो जाता है. हल्दी, मेहंदी, उबटन, भात जैसी कई तरह की रस्में निभाई जाती हैं. शादी वाले दिन दूल्हा घोड़ी पर बैठकर बारात लेकर दुल्हन के दरवाजे पर पहुंचता है और वहां दूल्हा और दुल्हन की वरमाला होने के बाद फेरे होते हैं. इस बीच जूता चुराई की भी रस्म होती है, जिसमें दुल्हन (Bride) की छोटी बहन अपने जीजा जी के जूते चुराती है और जूते वापस लेने के लिए उसे साली को नेग देना पड़ता है. ऐसी तमाम रस्में होने के बाद एक शादी (Marriage) पूरी होती है. इन रस्मों के पीछे सिर्फ धार्मिक मायने नहीं हैं, बल्कि वैज्ञानिक तथ्य भी छिपे हैं. यहां जानिए इनके बारे में.
हल्दी उबटन की रस्म
हल्दी को हिंदू धर्म में शुभता का प्रतीक माना गया है, इसलिए दूल्हा-दुल्हन की शादी की शुरुआत हल्दी की रस्म से होती है. इसके अलावा हल्दी को सौंन्दर्य प्रसाधन के तौर पर वर्षों से इस्तेमाल किया जा रहा है. माना जाता है कि हल्दी और उबटन लगाने से स्किन पर निखार आता है. साथ ही स्किन पर किसी तरह के संक्रमण की समस्या को हल्दी दूर करती है क्योंकि इसे एंटी बॉयोटिक माना जाता है.
मेहंदी दूर करती तनाव
मेहंदी को दुल्हन का शृंगार माना गया है. इसे भी शुभ माना जाता है और खुशी के मौके पर लगाया जाता है. इसलिए शादी से पहले दूल्हा और दुल्हन की मेहंदी की रस्म होती है. इसके अलावा मेहंदी तासीर में ठंडी होती है. इसे लगाने से मन शांत होता है. ऐसे में दूल्हा और दुल्हन को किसी भी तरह के तनाव से मुक्ति मिलती है. ये भी मान्यता है कि लड़की की मेहंदी जितनी गहरी रचती है, उसका वैवाहिक जीवन उतना ही प्रेमपूर्ण होता है.
श्रीकृष्ण ने शुरू की भात की रस्म
माना जाता है कि भात की प्रथा श्रीकृष्ण के समय से शुरू हुई, जब वे पहली बार सुदामा की लड़की के विवाह में परिवार वालों के लिए भी उपहार लेकर गए थे. आज के समय में भात की प्रथा मामा की तरफ से निभाई जाती है. इसमें मामा अपने भांजे या भांजी के अलावा अपनी बहन के ससुराल वालों के लिए भी उपहार लेकर आते हैं.
इसलिए घोड़ी चढ़ता है दूल्हा
दूल्हे को घोड़ी पर बैठाने के पीछे भी एक लॉजिक है. इसका कारण है कि घोड़ी को सभी जानवरों में चंचल व कामुक माना जाता है. इस कामुक जानवर की पीठ पर बैठाना इस बात का संकेत है कि व्यक्ति कभी इस स्वभाव को खुद पर हावी न होने दे.
वरमाला पहनाने के मायने
वरमाला इस बात का प्रतीक है कि वर और वधू दोनों ने एक दूसरे को पूरे मन से स्वीकार किया है. उन्हें इस विवाह से कोई आपत्ति नहीं है. मान्यता है कि समुद्र मंथन से प्रकट होने के बाद जगत जननी मां लक्ष्मी ने भी नारायण को वरमाला पहनाकर स्वीकार किया था. पहले के समय में स्वयंवर के दौरान भी कन्याएं वरमाला पहनाकर ही वर के प्रति अपनी स्वीकृति को जाहिर करती थीं.
सात फेरों का बंधन
अग्नि को हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना गया है. माना जाता है कि अग्नि के जरिए कही किसी भी बात के साक्षी स्वयं देवी देवता होते हैं. इसलिए शादी के समय अग्नि के समक्ष वर और वधू एक दूसरे के प्रति पूरी निष्ठा और ईमानदारी से रिश्ता निभाने का वचन लेते हैं. इसके बाद अग्नि के इर्द गिर्द सात फेरे लेकर इस रिश्ते को सामाजिक रूप से स्वीकारते हैं. तीन फेरों में दुल्हन आगे रहती है, बाद के चार फेरों में दूल्हा आगे रहता है.
इसलिए भरी जाती है मांग
शादी की रस्म के समय दूल्हा दुल्हन की मांग में लाल सिंदूर भरता है, जिसे शादी के बाद दुल्हन जीवनभर लगाती है. सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना गया है. शादी के समय मांग में सिंदूर भरना इस बात का संकेत है कि आज से वो कन्या समाज में उस व्यक्ति की पत्नी के रूप में जानी जाएगी.
जूते चुराने का कारण
शादी की रस्मों के बीच जूते चुराई की रस्म दोनों पक्षों के बीच हंसी ठिठोली करने और स्नेह का संबन्ध कायम करने के लिए बनाई गई है. इसका कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है. माना जाता है कि ये रस्म रामायण काल से चली आ रही है.
Rani Sahu
Next Story