धर्म-अध्यात्म

साधु-संत, भगवा, काला और सफेद वस्त्र क्यों धारण करते हैं, जानें इसके रहस्य और विज्ञान

Manish Sahu
19 July 2023 1:28 PM GMT
साधु-संत, भगवा, काला और सफेद वस्त्र क्यों धारण करते हैं, जानें इसके रहस्य और विज्ञान
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धर्म अध्यात्म: भारत में साधु-संतो का बहुत सम्मान किया जाता है। लोग उनसे सुख-शांति के लिए आशीर्वाद लेते हैं। ये भी कहा जाता है, कि साधु-संतो को नाराज नहीं करना चाहिए, वो श्राप भी दे देते हैं। भारत में हर 12 साल में होने वाले महाकुंभ और 6 साल में होने वाले कुंभ मेले में सबसे ज्यादा साधु आते हैं। आप ने इस बात पर गौर किया होगा कि कई साधु भगवा कपड़े पहने होते हैं तो कुछ काले रंग के और कई सफेद रंगों के कपड़े में दिखाई देते हैं। लेकिन कभी आप ने सोंचा कि साध-संत अलग-अलग रंग के कपड़े क्यों पहनते हैं? इसके पीछे भी रहस्य है, जिसके बारें में हम आपको बता रहे हैं- साधु-संतों का भगवा रंग पहनने का क्या कारण है ? भारत देश की सभ्यता और संस्कृति हजारों वर्षों पुरानी है, जिसमें साधु-संत भी उतने ही पुराने हैं। देश में आप ने हिंदू धर्म से संबंधित साधु-संतो के साथ ही बौद्ध और जैन धर्म के संतों को भी भगवा कपड़ों में देखा होगा। लेकिन इस रंग के पहनने के पीछे इनका एक मकसद होता है। गेरुआ रंग इस बात का प्रतीक होता है,
जिससे ये पता चलता है कि उनके जीवन में एक नया प्रकाश आ गया है, क्योंकि जब सूर्य का उदय होता है, तब सूरज की किरणों का रंग गेरुआ होता है।, जिसे भगवा, गेरुआ या नारंगी भी कहा जाता है। साधु-संत इस बात को दिखाने के लिए ये रंग धारण करते हैं कि उनके जीवन में एक नया सवेरा हो चुका है। हर मनुष्य के शरीर में सातों चक्र होते हैं, जिनका अपना रंग होता है। गेरुआ रंग आज्ञा चक्र का रंग है। जो आज्ञा ज्ञान-प्राप्ति को दिखाता है। जो लोग अध्यात्म पथ पर होते हैं, वो इस चक्र के उच्चतम स्तर तक पहुंच जाते हैं, इसलिए वो लोग इस रंग को पहनते हैं। साधु सन्यासियों के सफेद रंग के कपड़े पहनने के पीछे का विज्ञान जैन धर्म के साधु सन्यासी सदैव सफेद रंग के कपड़े धारण करते हैं। वहीं जैन मुनियों में दो तरह के संत होते हैं, जिसमें दिगंबर और दूसरे श्वेतांबर जैन मतावलंबी होते हैं। दिगंबर जैन साधु अपना पूरा जीवन बिना कपड़ों के व्यतीत करते हैं। वहीं श्वेतांबर जैन हमेशा सफेद कपड़े ही पहनते हैं। इसके पीछे भी उनका तर्क होता है। सफेद रंग वास्तव में कोई रंग ही नहीं है। प्रकाश के अपवर्तन (रिफलेक्शन) से सात रंगों को अलग अलग-अलग कर सकते हैं। जो श्वेत में समाहित हो जाते हैं। जब कोई शख्स आध्यात्मिक पथ पर जाने लगता है, वो सभी के साथ मिलाप होता है। संत दुनिया में कम से कम लेना चाहता है और अधिक देना चाहता है। क्योंकि इसमें परावर्तन की क्षमता यानी सब कुछ लौटा देने की खूबी होती है। न सिर्फ रंग के मामले में बल्कि गुणों में भी। वहीं जो साधु काले रंग के कपड़े धारण करते हैं, वो खुद को तांत्रिक कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि ऐसे साधुओं के तंत्र-मंत्र विद्या में ज्ञान प्राप्त होता है। काले कपड़े के अलावा रुद्राक्ष व शरीर पर भस्म भी लगाते हैं। काला रंग परावर्तित नहीं करता है। सब कुछ अपने में समा लेता है। जहां एक विशेष व शुभ ऊर्जा है तो काला सबसे अच्छा है, क्योंकि ऐसी जगह से आप शुभ ऊर्जा ज्यादा से ज्यादा अवशोषित करना कर लेंगे।

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