धर्म-अध्यात्म

भगवान विष्णु ने क्यों लिया था नरसिंह अवतार,जानिए

Manish Sahu
16 July 2023 9:30 AM GMT
भगवान विष्णु ने क्यों लिया था नरसिंह अवतार,जानिए
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धर्म अध्यात्म: हिंदू पंचांग के मुताबिक हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नरसिंह जयंती मनाई जाती है। इस साल नरसिंह जयंती 4 मई को मनाई जा रही है। इस दिन भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए नरसिंह अवतार लिया था।
हिंदू शास्त्रों में अहंकार को एक रोग बताया गया है। कहा जाता है कि अहंकार व्यक्ति की बुद्धि हर लेता है और वह खुद को सबसे श्रेष्ठ समझने की गलती कर बैठता है। जिसका उसे परिणाम भी भोगना पड़ता है। आज हम आपको एक ऐसे की राजा की कहानी बताने जा रहे हैं। लेकिन उससे पहले आपको बता दें कि आज यानी की 4 मई को नरसिंह जयंती मनाई जा रही है। पुराणों के मुताबिक वैशाख शुक्ल की चतुर्दशी तिथि पर भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए नरसिंह के रूप में अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था
पूजन विधि
मान्यता के अनुसार, नरसिंह जयंती के दिन श्रीहरि विष्णु की विधि-विधान से पूजा अर्चना करने से व्यक्ति के भय, दुख और शत्रु का नाश होता है। इसके साथ ही व्यक्ति की संतान पर कभी भी संकट के बादल नहीं मंडराते हैं। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि कर साफ कपड़े धारण करें। फिर नरसिंह भगवान और माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। फिर नरसिंह के मंत्रों का जाप करें। इसके बाद भगवान नरसिंह के नाम की 11 माला का जाप करें। लाल कपड़े में नारियल लपेट कर भगवान को अर्पित करें। फिर उन्हें फल-फूल, मिठाई, केसर और कुमकुम आदि अर्पित करें। इस दिन नरसिंह स्तोत्र का पाठ करें और फिर आरती करें।
महत्व
भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार के पीछे पौराणिक कथा व्यक्ति को जीवन में प्रेरणा देने का काम करती है। बहुत समय पहले हिरण्यकरण वन नामक एक राज्य का राजा दैत्य हिरण्यकश्यप था। वह स्वयं को भगवान मानता था। इसलिए वह चाहता था कि उसकी पूजा भगवान की तरह की जाए। हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था, जिसका नाम प्रहलाद था। प्रहलाद अपने पिता से विपरीत धार्मिक प्रवृत्ति का था। उसने अपने पिता की पूजा से इंकार कर दिया और दिन-रात श्रीहरि विष्णु की पूजन व स्मरण करता था।
जब प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप को इस बात की जानकारी हुई तो वह अपने बेटे को तमाम तरह की यातनाएं देने लगा। लेकिन इसके बाद बी प्रहलाद श्रीहरि के भक्ति में लीन रहता। जब हिरण्यकश्यप अपने पुत्र की भक्ति को नहीं रोक पाया तो उसने अपनी बहन होलिका से उसे खत्म करने के लिए कहा। बता दें कि होलिका को वरदान मिला था कि वह आग में नहीं जलेगी। भाई हिरण्यकश्यप के कहने पर होलिका अपने भतीजे यानी की प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ गई। इस दौरान प्रहलाद भगवान श्री हरि की स्तुति कर रहे थे।
हिरण्यकश्यप को भी प्राप्त था वरदान
जिसके फलस्वरूप होलिका, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था, वह आग में जलने लगी। जबकि प्रहलाद को कुछ भी नहीं हुआ। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर होली का त्योहार मनाया जाता है। हिरण्यकश्यप ने भी ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या से विचित्र वरदान मांगा था। उसने वरदान मांगा था ना तो उसे कोई मानव, पशु, दानव, देव न मार सके। उसकी मृत्यु न दिन में हो न रात में, न वह घर के भीतर मरे और न घर के बाहर मरे। इतना ही नहीं उसने वरदान मांगा कि न वह धरती में मरे, न आकाश में, न ही किसी शस्त्र से उसकी मौत हो।
क्यों लिया नरसिंह अवतार
ब्रह्मा जी से यह वरदान मिलने के बाद वह स्वयं को भगवान समझने लगा था। वह अपनी प्रजा को भी तमाम तरह के दुख देता था। उसके अत्याचारों के कारण तीनो लोकों में त्राहिमाम मच गया था। होलिका की घटना के बाद भी जब उसका अत्याचार कम नहीं हुआ तो प्रहलाद ने अपने पिता को समझाने का प्रयास किया। लेकिन हिरण्यकश्यप पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। एक दिन हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र से कहा कि यदि तेरे भगवान हर कण में हैं तो वह स्तंभ में क्यों नहीं दिखते। इतना कहते ही उसने स्तंभ पर वार किया।
तभी भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में स्तंभ से प्रकट हो गए। भगवान श्री हरि का नरसिंह अवतार आधा शरीर शेर और आधा शरीर मानव का था। भगवान नरसिंह हिरण्यकश्यप को लेकर राजमहल की दहलीज पर गए। इसके बाद उसे अपनी जंघा पर लिटाकर हिरण्यकश्यप के सीने को नाखूनों से चीर दिया। इस तरह से हिरण्यकश्यप की मृत्यु हो गई। भगवान विष्णु ने जब नरसिंह रूप में हिरण्यकश्यप का वध किया तो वह वह न तो घर के अदंर था और ना ही बाहर, उस दौरान न दिन था न रात, भगवान नरसिंह न मानव थे न पशु। उन्होंने उसे न धरती पर मारा न आकाश में। इसी तरह से उसका वध किसी शस्त्र से नहीं बल्कि अपने नाखूनों से किया था।
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