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धर्म-अध्यात्म
रावण की भरी सभा में सबके मुकुट जमीन पर क्यों गिरने लगे थे
Manish Sahu
5 Sep 2023 3:26 PM GMT
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धर्म अध्यात्म: रावण के भरी सभा में सारे मुकुट गिर कर भूमि पर आन गिरे। कारण कि वीर अंगद द्वारा, लंका की धरती पर मारे गए एक मुष्टिका प्रहार ने, पूरी धरती ही हिला डाली थी। रावण की स्थिति तो अभी से ही बड़ी दयनीय प्रतीत हो रही थी। कारण कि रावण अपने सिर से गिरे मुकुटों को ऐसे संभाल रहा था, माना किसी बच्चे के खिलौने बिखर गए हों, और वह उन्हें समेट रहा हो। मूर्ख रावण को यह चिंतन पता नहीं कब होना था, कि आवश्यकता इन बिखरे मुकुटों को समेटने की नहीं है, अपितु अपनी बिखरी बुद्धि को समेटने की है। रावण के पास अब कुल छः मुकुट होने चाहिए। कारण कि उसके दसों में से चार मुकुट तो वीर अंगद ने प्रभु के श्रीचरणों में भेज दिए थे। रावण ने जब यह दृश्य भरी सभा में देखा, तो वह झुंझला उठा। वह क्रोध से पगला गया। रावण स्वयं तो वीर अंगद का कुछ नहीं बिगाड़ पाया, लेकिन अपने योद्धाओं को आदेश देता है-
रावण ने कहा, कि इस वानर को मार कर सब योद्धा तुरंत दौड़ो और जहाँ कहीं भी रीछ-वानरों को पाओ, वहीं खा डालो। पृथ्वी को वानरों को से रहित कर दो, और जाकर दोनों तपस्वी भाइयों को जीते जी पकड़ लो।
रावण के कोप भरे वचन सुन कर वीर अंगद बोले, कि हे रावण! तुझे गाल बजाते लाज नहीं आती। अरे निर्लज्ज! अरे कुलनाशक! गला काटकर तू मर ही जा! मेरा बल देखकर भी क्या तेरी छाती नहीं फटती?
अरे स्त्री चोर! अरे कुमार्ग पर चलने वाले! अरे दुष्ट, पाप की राशि, मन्द बुद्धि और कामी! तू सन्निपात में क्या दुर्वचन बक रहा है? अरे दुष्ट राक्षस! तू काल के वश हो गया है! इसका फल तू आगे वानर और भालुओं के चपेटे लगने पर पावेगा। राम मनुष्य हैं, ऐसा वचन बोलते ही, अरे अभिमानी! तेरी जीभें नहीं गिर पड़तीं? इसमें संदेह नहीं है, कि तेरी जीभें सिरों के साथ रणभूमि में गिरेंगी। अरे दशकन्ध! जिसने एक ही बाण से बालि को मार डाला, वे मनुष्य कैसे हैं? अरे कुजाति, अरे जड़! बीस आँखें होने पर भी तू अंधा है। तेरे जन्म को धिक्कार है।
श्रीराम जी के बाण समूह तेरे रक्त की प्यास से प्यासे हैं। वे प्यासे ही न रह जायें, इस डर से, अरे कड़वी बकवास करने वाले नीच राक्षस! मैं तुझे छोड़ता हूँ।
मैं तेरे दाँत तोड़ने में समर्थ हूँ। पर क्या करूँ? श्री रघुनाथजी ने मुझे ऐसी आज्ञा नहीं दी। ऐसा क्रोध आता है, कि तेरे दसों मुँह तोड़ डालूँ और लंका को पकड़कर समुद्र में डुबो दूँ। तेरी लंका गूलर के फल के समान है। तुम सब कीड़े उसके भीतर निडर होकर बस रहे हो। मैं बंदर हूँ, मुझे इस फल को खाते क्या देर थी? पसर उदार श्री रामचन्द्रजी ने वैसी आज्ञा नहीं दीं।
अंगद की युक्ति सुनकर रावण सुस्कुराया, और बोला- अरे मूर्ख! बहुत झूठ बोलना तूने कहाँ से सीखा? बालि ने तो कभी ऐसा गाल नहीं मारा। जान पड़ता है तू उन तपस्वियों से मिलकर लबार हो गया है।
यह सुन कर वीर अंगद क्रोध से गर्ज उठे, और दहाड़ते हुए बोले- अरे बीस भुजा वाले! यदि तेरी दसों जीभें मैंने नहीं उखाड़ लीं, तो मैं सचमुच लबार ही हूँ।
Manish Sahu
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