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धर्म-अध्यात्म
यज्ञ के लिए दक्ष प्रजापति ने क्यों नहीं दिया था भगवान शिव और बेटी सती को निमंत्रण
Ritisha Jaiswal
22 Jun 2022 5:03 PM GMT
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वन में सीता की खोज में व्याकुल प्रभु श्री राम की सती जी द्वारा परीक्षा लेने से व्यथित शिव जी ने मन ही मन उनका परित्याग कर दिया
वन में सीता की खोज में व्याकुल प्रभु श्री राम की सती जी द्वारा परीक्षा लेने से व्यथित शिव जी ने मन ही मन उनका परित्याग कर दिया और कैलाश पर्वत पर पहुंच कर अखंड समाधि में लीन हो गए. सती जी भी दुखी मन से कैलाश में ही रहने लगीं, उन्होंने दुखी भाव से प्रभु श्री राम का स्मरण कर कहा कि विनती की कि आप तो सबका दुख हरने वाले हैं, वर्तमान स्थितियों में तो यही चाहती हूं कि मेही यह देह ही जल्दी से जल्दी छूट जाए. लगभग 87 हजार वर्ष बीत जाने पर शिव जी ने श्री राम का नाम लेते हुए समाधि खोली तो सती जी ने जाना कि जगत के स्वामी जाग गए हैं, उन्होंने आगे बढ़ कर प्रणाम किया तो शिव जी ने सामने बैठने के लिए आसन दिया. शिव जी श्री हरि की कथाएं सुनाने लगे. इसी समय में दक्ष प्रजापति हुए और ब्रह्मा जी ने उन्हें सब प्रकार से योग्य मान कर प्रजापतियो का नायक बना दिया.
प्रभुता पाकर दक्ष प्रजापति को भी अभिमान हो गया
तुलसीदास जी मानस में लिखते हैं कि जगत में ऐसा कोई नहीं है जो प्रभुता पा कर अभिमानी न हो जाए. इतना बड़ा अधिकार पाकर दक्ष को भी घमंड हो गया. दक्ष में सभी मुनियों को बुलाकर बड़ा सा यज्ञ करने की योजना बनाई जिसमें सभी देवताओं को आदर सहित निमंत्रित किया. दक्ष का निमंत्रण पाकर ब्रह्मा जी, विष्णु जी और महादेव को छोड़कर किन्नर, नाग, सिद्ध, गंधर्व और सभी देवता अपनी अपनी पत्नियों के साथ यज्ञ में भाग लेने के लिए अपने अपने विमानों को सजा कर चल पड़े. सती जी ने देखा की आकाश मार्ग से अनेकों प्रकार के सुंदर विमान चले जा रहे हैं और देव सुंदरियां मधुर गीत गा रही हैं जिनके सुनने से मुनियों का ध्यान भंग हो जाता है.
सती जी ने महादेव से पूछा देवताओं के जाने का कारण
सती जी ने आकाश मार्ग से देवताओं को विमानों से जाते देखा तो महादेव से उनके जाने का कारण पूछा. महादेव ने ध्यान कर दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ करने की बात बताई. पिता द्वारा यज्ञ की बात सुनकर सती जी भी कुछ प्रसन्न हुईं और सोचने लगीं कि यदि महादेव जी आज्ञा दें तो कुछ दिन पिता के घर रहकर आऊं. उनके मन में पति द्वारा त्यागे जाने का गहरा दुख था इसलिए उन्हें पति से अनुमति लेने में संकोच लग रहा था. फिर संकोच, भय और प्रेम रस में सराबोर होकर उन्होंने मधुर वाणी से कहा, हे प्रभो मेरे पिता के घर में बहुत बड़ा उत्सव है, यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं भी आदर सहित उसे देखने के लिए जाऊं.
Ritisha Jaiswal
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