धर्म-अध्यात्म

क्यों महत्वपूर्ण मानी जाती है देवउठानी एकादशी, आइये जानते हैं विस्तार से

Teja
26 Oct 2021 10:26 AM GMT
क्यों महत्वपूर्ण मानी जाती है देवउठानी एकादशी, आइये जानते हैं विस्तार से
x
माना जाता है कि देवउठानी एकादशी पर व्रत व पूजन करने से एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ करने के बराबर फल मिलता है. कहा जाता है कि इस दिन व्रत-पूजन, दान-पुण्य और नदी में स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पाप मिट जाते हैं और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है. माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु का पूजन और व्रत करने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है. साथ ही सभी रोगों का नाश होता है और भगवान विष्णु का चरणामृत पीने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

जनता से रिस्ता वेबडेसक | वैसे तो साल भर में पड़ने वाली सभी एकादशी (Ekadashi) हिन्दू धर्म में काफी महत्त्व (Importance) रखती हैं. लेकिन इन सबमें महत्वपूर्ण मानी जाती है देवउठानी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) जिसे देव प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है. विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने शंखासुर नाम के राक्षस का वध किया था. इसके बाद आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे हरिशयनी एकादशी भी कहा जाता है के दिन भगवान क्षीर सागर में शेषनाग की शय्या पर शयन करने लगे. चार महीनों की योग निद्रा के बाद देवउठानी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं. इसी दिन माता तुलसी और भगवान शालिग्राम के विवाह का आयोजन होता है और शुभ कार्यों की शुरुआत भी हो जाती है. पंचांग के अनुसार इस वर्ष 14 नवंबर को रविवार के दिन देवउठानी एकादशी तिथि है. आइये जानते हैं कि देवउठानी एकादशी को जीवन में बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है.

देवउठानी एकादशी व्रत और पूजन को इसलिए माना जाता है महत्वपूर्ण

देवउठानी एकादशी तिथि का उपवास बुद्धिमान, शांति प्रदाता व संततिदायक माना जाता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान व भगवान विष्णु के पूजन का विशेष महत्त्व है.

माना जाता है कि देवउठानी एकादशी पर व्रत व पूजन करने से इसका फल एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ करने के बराबर मिलता है.

कह जाता है कि इस दिन व्रत-पूजन, दान-पुण्य और नदी में स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पाप मिट जाते हैं और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है.

माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु का पूजन और व्रत करने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है. साथ ही सभी रोगों का नाश होता है और भगवान विष्णु का चरणामृत पीने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

मान्यता है कि पूजन के अंत में 'ऊं भूत वर्तमान समस्त पाप निवृत्तय-निवृत्तय फट्' मंत्र की 21 माला जाप करके अग्नि में शुद्ध घी की 108 आहुतियां देने से जीवन के सारे रोगों, कष्टों और चिंताओं से मुक्ति मिल जाती है.

माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजन में द्राक्ष, ईख, अनार, केला, सिंघाड़ा आदि मौसमी फल भगवान विष्णु को अर्पित करने से जीवन में कल्याण ही कल्याण होता है.

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. जनता से रिस्ता इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)

Next Story