धर्म-अध्यात्म

भगवान शिव को क्यों चढ़ाया जाता है बेलपत्र और गंगा जल

Apurva Srivastav
6 July 2023 2:03 PM GMT
भगवान शिव को क्यों चढ़ाया जाता है बेलपत्र और गंगा जल
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सावन का महीना शिव को बहुत प्रिय है. कहा जाता है कि सावन माह में ही समुद्र मंथन हुआ था, जिसमें हलाहल विष निकला था और भगवान शिव ने उसे अपने अंदर ले लिया था. इसके बाद उनके गले में बहुत जलन होने लगी, जिसके बाद सभी देवताओं, दैत्यों और दानवों ने बाबा भोलेनाथ को गंगाजल से स्नान कराया. इसके साथ ही बिल्वपत्र चढ़ाया गया. वर्तमान समय काल मे श्रद्धालु गंगाजल और बेलपत्र (बिल्वपत्र) बाबा भोलेनाथ को अर्पण करते हैं. लेकिन आपको इसके पीछे का कारण पता है. अगर नहीं तो आइये आज हम आपको बताते हैं इसके पीछे का कारण.
बाबा भोलेनाथ को क्यों चढ़ाया जाता है बिल्वपत्र? (Sawan 2023)
भगवान भोलेनाथ को बेलपत्र अत्यंत प्रिय है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव की पूजा में अगर बेलपत्र न चढ़ाया जाए तो पूजा अधूरी मानी जाती है. बेलपत्र की एक साथ जुड़ी हुई तीन पत्तियां पवित्र मानी जाती हैं. इन तीन पत्तों को त्रिदेव माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि तीन पत्तियां महादेव के त्रिशूल का प्रतिनिधित्व करती हैं. यह भी माना जाता है कि शिवलिंग पर बेलपत्र की तीन जुड़ी हुई पत्तियां चढ़ाने से भगवान शिव को शांति मिलती है और भगवान शिव प्रसन्न होते हैं.
जब भगवान भोलेनाथ ने किया था विषपान (Sawan 2023)
जब विष पीने की बात आई तो सभी देवता और दानव पीछे हट गए और विष से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की. उस समय भगवान शिव ने विष पिया. जब भगवान शिव ने विष धारण किया तो विष की कुछ बूंदें पृथ्वी पर भी गिरीं, जिन्हें सांप, बिच्छू और अन्य जहरीले जीव-जंतुओं ने सोख लिया. इससे वे सभी जहरीले हो गये. वहीं भगवान शिव ने सारा विष अपने कंठ में समाहित कर लिया.
भगवान शिव को क्यों चढ़ाया जाता है गंगा जल?
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा बैद्यनाथ धाम में सावन में गंगा जल चढ़ाने का विशेष महत्व माना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, पूर्वकाल में जब राक्षसों का आतंक बढ़ गया और राक्षसों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया. उस समय देवता और ऋषि-मुनि भगवान श्रीहरि विष्णु के पास गए, जहां उन्होंने उन्हें राक्षसों पर विजय पाने के लिए समुद्र मंथन करने की सलाह दी. इसके बाद देवताओं ने राक्षसों के साथ मिलकर वासुकी नाग और मंदार पर्वत की सहायता से क्षीर सागर में समुद्र मंथन किया. इससे 14 रत्नों सहित अमृत और विष की प्राप्ति हुई.
इसलिए गंगाजल से किया जाता है जलाभिषेक
मान्यता के अनुसार, उस दौरान भगवान शिव बहुत कष्ट में थे. इस पीड़ा को बुझाने या कम करने के लिए रावण और देवताओं ने गंगालज लाकर उन्हें पिलाया, जिससे विष की पीड़ा कम हो गई. प्राचीन काल से ही भगवान शिव का जलाभिषेक गंगाजल से किया जाता है. आधुनिक समय में कांवरिए गंगा जल लेकर कांवर में यात्रा करते हैं और गंगा जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.
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