धर्म-अध्यात्म

किसने बनाया सबसे पहले पार्थिव शिवलिंग?

Ritisha Jaiswal
30 July 2022 8:45 AM GMT
किसने बनाया सबसे पहले पार्थिव शिवलिंग?
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हिंदू धर्म में सावन के महीने को त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. इस महीने में भोलेनाथ के भक्त उनकी भक्ति में डूबे रहते हैं.

हिंदू धर्म में सावन के महीने को त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. इस महीने में भोलेनाथ के भक्त उनकी भक्ति में डूबे रहते हैं. सावन मास भगवान भोलेनाथ को अति प्रिय है, इसलिए भोलेनाथ के भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए सावन के महीने में पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ उनकी आराधना करते हैं. सावन के माह में पार्थिव शिवलिंग (Parthiv Shivling) बनाकर पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व है. शिव महापुराण में बताया गया है कि सावन के महीने में पार्थिव शिवलिंग का पूजन करने से भय नाश होता है. साथ ही धन-धान्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है. भोपाल के रहने वाले ज्योतिषी एवं पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा पार्थिव शिवलिंग का महत्व बता रहे हैं.

किसने बनाया सबसे पहले पार्थिव शिवलिंग?
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, सावन के महीने में पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा करना बहुत लाभकारी माना जाता है. ऐसा माना गया है कि इसकी शुरुआत कलयुग के प्रारंभ में कुष्मांड ऋषि के पुत्र मंडप ने की थी. उन्होंने पूरे सावन के महीने में पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा करना शुरू किया. तब से लगातार भोलेनाथ के भक्त सावन के माह में पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा करते आ रहे हैं.
पार्थिव शिवलिंग की पूजा का महत्त्व
धर्म शास्त्रों के मुताबिक शिवलिंग की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है. धर्म शास्त्रों में भगवान शिव को कल्याणकारी देवता के रूप में पूजा जाता है. ऐसा माना गया है कि पार्थिव शिवलिंग बनाकर विधिवत पूजा-अर्चना करने से हर प्रकार की समस्या खत्म होती है. शिव पुराण के अनुसार पार्थिव शिवलिंग के पूजन से सभी दुखों को दूर किया जा सकता है. साथ ही व्यक्ति की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं.
नदी या तालाब की मिट्टी से बनाएं शिवलिंग
धर्म शास्त्रों के अनुसार पार्थिव शिवलिंग बनाने के लिए किसी पवित्र नदी या तालाब की मिट्टी का इस्तेमाल करना चाहिए. इस मिट्टी को चंदन और फूलों से पूजा करके इसमें दूध मिलाकर शिव मंत्र बोलते हुए शिवलिंग बनाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए. ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस शिवलिंग को बनाते समय व्यक्ति का मुंह हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर ही रहना चाहिए


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