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कौन हैं माँ गायत्री, क्यों इतना महत्वपूर्ण है गायत्री मंत्र
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | ज्येष्ठ मास की शुक्ल एकादशी तिथि को गायत्री जयंती मनाई जाती है. इस बार गायत्री जयंती आज 21 जून को मनाई जा रही है. गायत्री संहिता के अनुसार, गायत्री माता सरस्वती, लक्ष्मी और काली मां का प्रतिनिधित्व करती हैं. वो वेदमाता हैं. उन्हें परम शक्तिशाली माना जाता है.
मान्यता है कि गायत्री ही वो शक्ति हैं जो पूरी सृष्टि की रचना, स्थिति या पालन और संहार का कारण हैं. वेदों में गायत्री शक्ति ही प्राण, आयु, तेज, कीर्ति और धन देने वाली मानी गई है. चारों वेद शास्त्र, श्रुतियां सभी मां गायत्री से ही पैदा हुए माने जाते हैं. इसीलिए माता गायत्री को मूर्त रूप में वेदमाता या गायत्री माता के रूप में पूजा जाता है. ज्योतिषाचार्या प्रज्ञा वशिष्ठ से जानिए मां गायत्री और उनके शक्तिशाली मंत्र की महिमा के बारे में.
अथर्व वेद में मां गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति,कीर्ति और ब्रह्म तेज देने वाली देवी कहा गया है. वहीं वेद व्यास कहते हैं जैसे फूलों में शहद, दूध में घी सार रूप में होता है, ऐसे ही गायत्री समस्त वेदों का सार है. गायत्री रूपी गंगा से आत्मा पवित्र हो जाती है. शास्त्रों में गायत्री मंत्र को भी महामन्त्र कहा गया है. मान्यता है कि गायत्री मंत्र शरीर की कई शक्तियों को जाग्रत कर सकता है.
गायत्री मंत्र का अर्थ
ॐ भूर्भवः स्वः, तत्सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो नः प्रचोदयात्. इस संपूर्ण मंत्र का अर्थ है, तीनों लोकों में व्याप्त उस श्रेष्ठ परमात्मा का हम ध्यान करते हैं, परमात्मा का वो तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने को प्रेरित करे. माना जाता है कि इस मंत्र में सम्पूर्ण वेद बसता है. गायत्री मंत्र के जाप से तन और मन मजबूत होता है.
समझिए गायत्री मंत्र की शक्ति
कमल के तीन भाग बताए गए हैं भू,भुवः,स्व:. ऋग्वेद में भू अर्थ है ब्रह्मा भुव: अर्थात विष्णु और स्व: का तात्पर्य महेश से है. वेदों के अनुसार भू, भुव: और स्व: ही पृथ्वी का आधार है. ब्रह्म पुराण में ईश्वर ,जीव और प्रकृति के संबंध में इनका प्रयोग किया गया है. जबकि विष्णु पुराण में इन्हें स्थल शरीर, सूक्ष्म शरीर और क्रिया शरीर बताया गया है. ये तीन अक्षर तीन लोकों के बारे मे भी बताते हैं और इन्हीं से चौबीस अक्षरीय गायत्री मंत्र फूटता है.ॐ भूर्भुवः स्व: यजुर्वेद से लिया गया है, ऋग्वेद से तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् लिया गया है. यह सावित्री देवी की उपासना का मंत्र है, इसीलिए इसे सावित्री भी कहते हैं.
ऋषि विश्वामित्र हैं रचियता
शास्त्रों के अनुसार सर्वप्रथम ब्रह्मा जी को गायत्री मंत्र का ज्ञान प्राप्त हुआ था. तब यह देवताओं तक ही सीमित था. लेकिन बाद में ऋषि विश्वामित्र ने कठोर साधना कर गायत्री की महिमा को सर्व साधारण तक पहुंचाया. इसी कारण गायत्री मंत्र की रचियता विश्वामित्र माने जाते हैं.
इसे मंत्रों में सबसे शक्ति शाली मंत्र माना जाता है. मान्यता है गायत्री मंत्र का जाप करने से देवत्व की प्राप्ति होती है. कोई भी अनुष्ठान कभी गायत्री मंत्र के बिना पूरा नहीं माना जाता है.
गंभीर रोगों में भी गायत्री मंत्र के जाप से होता लाभ
गायत्री मंत्र के नियमित और निश्चित ध्वनि लय के साथ जाप करने से अवर्णीय लाभ और आत्मिक शांति, शक्ति प्राप्त होती है. इसके विधिपूर्वक जाप से अनेक रोगों में भी लाभ प्राप्त होता है. मानसिक रोगियों, रक्त चाप से पीड़ित रोगी और कैंसर जैसे गंभीर रोगियों को भी इसके नियमित जाप से बहुत लाभ प्राप्त हुआ है. ये तथ्य अनेकों वैज्ञानिक प्रयोगों से भी सिद्ध हो चुका है.
अगर यही मंत्र जाप निश्चित ध्वनि लय के साथ न किया जाए तो इसका पूर्णत: असरकार नहीं होता.
ये हैं मंत्र के नियम
गायत्री मंत्र जाप के कुछ नियम और विधान हैं, यदि इन नियमों का ध्यान रखते हुए गायत्री मंत्र का जाप किया जाए तो ये मंत्र कहीं ज्यादा असरकारी होता है. इसके पुरश्चरण के लिए चालीस दिन की अवधि निश्चित है. पूर्ण अनुष्ठान में चौबीस लाख जाप करने का विधान बताया गया है. मंत्र जाप का पहला नियम है कि इसका उच्चारण निर्धारित लय और छंद में किया जाना चाहिए.गायत्री मंत्र का जाप आत्मशोधन, ज्ञान प्राप्ति और आत्म जागृति के लिए किया जाना चाहिए.
मंत्र जाप के दौरान मन में अहंकार का भाव बिल्कुल नहीं होना चाहिए. सदैव शांत मन से जाप किया जाना चाहिए. इसके लिए तन, मन और स्थान की शुद्धता बहुत आवश्यक है. जाप के दौरान संभव हो तो श्वेत अथवा पीत वस्त्र धारण करें और आसन का प्रयोग अवश्य करें. तुलसी चंदन या रुद्राक्ष माला से इसका जाप करना चाहिए. सामान्यत: इस जाप के लिए सूर्योदय, मध्याह्न और प्रदोष काल सर्वश्रेष्ठ समय है. किसी विशिष्ट सिद्धि की प्राप्ति के लिए सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण काल अति उत्तम माना गया है.