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सनातन धर्म में वास्तु का विशेष महत्व है। गृह निर्माण के समय वास्तु नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है। अगर लापरवाही बरतते हैं, तो जीवन में अस्थिरता आ जाती है। वास्तु नियमों का पालन करने से घर में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है। इसके लिए ज्योतिष हमेशा गृह निर्माण के समय वास्तु नियमों का पालन करने की सलाह देते हैं। अगर आप भी गृह निर्माण करने जा रहे हैं, तो वास्तु के इन नियमों का जरूर पालन करें। आइए जानते हैं-
अगर आप गृह बनवाने जा रहे हैं, तो स्थानीय पंडित से सलाह लेकर शुभ तिथि ज्ञात कर लें। इसके पश्चात, निश्चित तिथि पर पूजा कर गृह निर्माण कार्य शुरु करवा सकते हैं।
मकान की लंबाई को नौ बराबर भागों में बांट दें। पांच भाग दाएं और तीन भाग बाएं छोड़कर शेष भाग में मुख्य द्वार बनाना चाहिए। घर से निकास के लिए दाएं तरफ प्रवेश द्वार बनवाएं।
घर में प्रवेश हेतु एक द्वार ही रखें। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर के मुख्य द्वार पर तीन दरवाजे शुभ नहीं होता है। घर में प्रवेश हेतु उत्तर और पूर्व की दिशा बेहतर होता है।
घर के बाहर उत्तर दिशा में गूलर, पाकड़ आदि वृक्ष न लगाएं। इससे नेत्र संबंधी बीमारियां उतपन्न होती हैं। साथ ही घर में बेर, केला, पीपल और अनार के पेड़ भी न लगाएं। इससे घर की बरकत गायब हो जाती है।
घर का मुख्य द्वार उत्तर या पूर्व दिशा में होना शुभ होता है। दक्षिण की दिशा में भूलकर भी द्वार न दें। इससे घर में नकारात्मक शक्ति का आगमन होता है।
घर की उत्तर पूर्व दिशा में बृहस्पति देव का वास होता है। इसके लिए उत्तर पूर्व दिशा में पूजा घर रखें। मंदिर में देवी-देवताओं का मुख पूर्व की दिशा में रखें। ।
घर की दक्षिण पूर्व दिशा में अग्निदेव का वास होता है। इसके लिए रसोईघर में दक्षिण पूर्व दिशा में रखें।