धर्म-अध्यात्म

प्रार्थना कब, किसे और कैसे करनी चाहिए, जानें इससे जुड़े लाभ

Bhumika Sahu
14 Dec 2021 6:35 AM GMT
प्रार्थना कब, किसे और कैसे करनी चाहिए, जानें इससे जुड़े लाभ
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जीवन से जुड़ी तमाम मुश्किलों से पार पाने में जब एक इंसान विफल हो जाता है, तब वह ईश्वर से सफलता के लिए प्रार्थना करता है. श्रद्धा और विश्वास के साथ ​की जाने वाली दैवीय प्रार्थना को सफल बनाने के लिए क्या कुछ नियम भी होते हैं, इसे जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ईश्वर की भक्ति करने के कई मार्ग हैं, लेकिन उन सभी में सबसे प्रचलित और सरल-सहज उनकी प्रार्थना करना है. जिस तरह ईश्वर की पूजा के नियम है, क्या उसी तरह उनकी प्रार्थना का भी कोई नियम होता है. मसलन ईश्वर की प्रार्थना कब, कहा, और किस तरह की जाए या फिर कहें उनकी प्रार्थना बंद कमरे में या फिर खुले आकाश तले की जाए. आसन पर बैठ कर किया जाए या फिर जमीन पर खड़े होकर किया जाए. ऐसे कई सवाल अक्सर हमारे मन में आते रहते हैं. आइए जानते ईश्वर की प्रार्थना से जुड़ी कुछ जरूरी बाते...

सनातन परंपरा में त्रिकाल संध्या की यदि हम बात करें तो इसका पूरा विधान है, जिसके तहत प्रातःकाल, सायंकाल और तथा मध्याहन में संध्या कहां और कैसे की जाए, संध्या में किन मंत्रों से सूर्य का स्तवन हो यह सब सुनिश्चित है. हालांकि ईश्वर का स्मरण और उनकी प्रार्थना हम कभी भी कहीं भी कर सकते हैं.
प्रार्थना का अर्थ है उस परमशक्ति से दया, कृपा, कामना आदि को लेकर याचना करना. ईश्वर की प्रार्थना सामूहिक और व्यक्तिगत दोनों तरह से होती है. इसमें जब हम सामूहिक प्रार्थना करते हैं तो निश्चित तौर पर उसका समय, स्थान और प्रार्थना करने की पद्धति और प्रार्थना के शब्द निश्चित करने पड़ते हैं.
पवित्र मन से भगवान का सुमिरन करना और उनसे कामना करना ही प्रार्थना है. यदि सच्चे मन से प्रार्थना की जाती है तो वह निश्चित रूप से पूरी होती है. प्रार्थना करते समय अपने मन में क्रोध, वासना, घृणा, आदि आदि न लाएं. ईश्वर से र्पसिर्फ अपने भले की ही कामना न करें, बल्कि प्रार्थना में अपने बंधु-बांधव के साथ पूरे विश्व के कल्याण की कामना करें.
ईश्वर की वंदना या फिर कहें स्तुति और प्रार्थना में अंतर होता है. जैसे वंदना का अर्थ है- हम जिसकी वंदना करते हैं, उसके प्रति हम आभार या फिर कहें उनके जो उपकार हमारे ऊपर हैं, उनको व्यक्त करते हुए, कृतज्ञता प्रकट करते हुए ईश्वर को प्रणाम करते हैं. वहीं स्तुति का अर्थ प्रशंसा या फिर कहें ईश्वर का गुणगान करना है.
ईश्वर की प्रार्थना कहीं पर कभी भी की जा सकती है, क्योंकि ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां वह दीनदयाल उपस्थित नहीं है. ईश्वर की प्रार्थना आप चाहे आंख बंद करके करें या फिर आंख खोलकर यह आपकी सुविधा की बात है, लेकिन परमपिता ईश्वर की साधना एकाग्र मन और पूरी श्रद्धा भाव के साथ करें.
कहते हैं कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना को ईश्वर अवश्य सुनता है. ईश्वर ने आपकी प्रार्थना सुनी की नहीं या फिर कहें उनकी आप पर कृपा बरसी की नहीं, इसे आप कुछेक संकेतों से जान और समझ सकते हैं. मसलन, यदि आप कठिन परिस्थितियों से गुज रहे हों और आप ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह आपकी मुश्किल को दूर करें और उसी समय आपकी मदद के लिए कोई हाथ बढ़ा दे तो उसे आप ईश्वर का दूत या फिर उनके द्वारा भेजी गई मदद ही मानिए.


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