धर्म-अध्यात्म

भगवान शिव को जब करना पड़ा था विष्णु अवतार नरसिंह को शांत, जानें क्यों?

Triveni
11 April 2021 1:20 AM GMT
भगवान शिव को जब करना पड़ा था विष्णु अवतार नरसिंह को शांत, जानें क्यों?
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सनातन धर्म के इतिहास में जब भी अधर्म, क्रूरता और निर्दयता को बढ़ावा देने वालों ने जन्म लिया है,

सनातन धर्म के इतिहास में जब भी अधर्म, क्रूरता और निर्दयता को बढ़ावा देने वालों ने जन्म लिया है, उनका निश्चित ही विनाश हुआ है. सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने कई युगों में अलग-अलग रूपों में आकर अधर्म का नाश किया है. द्वापर में भगवान कृष्ण द्वारा कंस वध से लेकर महाभारत तक के त्रेतायुग में भगवान राम द्वारा रावण का वध और सत्ययुग में भगवान नरसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध. इनके अतिरिक्त भगवान विष्णु ने और भी अनेक अवतार लिए और पापियों का विनाश किया.

आज की कहानी में हम बात करेंगे कि हिरण्यकशिपु का विनाश करने वाले नरसिंह भगवान का क्या हुआ?
हिरण्यकशिपु के वध के बाद क्या वो ब्रम्हाण्ड में विचरण करते रहे या अदृश्य हो गए? या फिर उनका वध किया गया?
आज की इस कड़ी में हम कुछ ऐसा बताने जा रहे हैं, जो आपने कभी न सुना हो. आइए इस कथा को जानते हैं-
नरसिंह अवतार का क्या हुआ ?
सत्ययुग में एक अत्यंत निर्दयी असुर हिरण्यकशिपु था. जो दैत्यों का राजा था. कठिन तपस्या से उसने ब्रम्हा जी से वरदान प्राप्त किया था कि न तो उसे मनुष्य मार सकता है और न ही पशु, न तो उसे दिन में मारा जा सकता है न ही रात में, न घर के अंदर न ही बाहर और न ही किसी अस्त्र से या शस्त्र से उसका वध किया जा सकता है. ऐसा वरदान प्राप्त करके उसे ये अहम हो गया था कि संसार में वो सबसे अधिक शक्तिशाली है और कोई भी उसका वध नहीं कर सकता.
इस तरह वो स्वयं को भगवान समझने लगा और चाहता था कि उसकी प्रजा विष्णु की नहीं अपितु उसकी पूजा करे. परन्तु, उसके स्वयं का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. प्रह्लाद के क्रूर और घमंडी पिता ने उसका वध करने के अनेक प्रयास किए परन्तु हर बार असफल रहा. तब अंततः हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, से कहा कि प्रह्लाद को अपनी गोदी में लेकर अग्नि पर बैठ जाए परन्तु भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और प्राण बचाए और वरदान के विपरीत होलिका अग्नि से जल गई.
इसके पश्चात जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को प्रताड़ित करने लगा तब एक खम्भे से प्रकट होकर नरसिंह रूप में भगवान विष्णु ने संध्या के समय घर की चौखट पर और अपनी गोद में उठकर हिरण्यकशिपु की छाती को अपने नखों से चीरकर उसका वध किया. इस प्रकार ब्रम्हा जी द्वारा दिया वरदान भी बना रहा और अधर्म और पाप का विनाश भी भगवान द्वारा किया गया.
परन्तु इस भयावह वृत्तांत के पश्चात् नरसिंह भगवान का क्रोध शांत नहीं हुआ. उनके क्रोध से सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड भयभीत हो उठा. ऐसी स्थिति देख सभी देवों ने महादेव से जाकर प्रार्थना की कि वो नरसिंह भगवान का क्रोध शांत करें. तब शिवजी ने सर्वप्रथम वीरभद्र को नरसिंह को शांत करने के लिए भेजा परन्तु वीरभद्र भी उनका क्रोध शांत नहीं कर सके तब अंततः महादेव ने सर्वेश्वर अवतार लिया.
शिव जी के इस रूप को शरभ अवतार भी कहा जाता है जिसमें मनुष्य, पक्षी और शेर का समावेश था. सर्वेश्वर अवतार में महादेव ने नरसिंह भगवान का क्रोध शांत करने का प्रयास किया परन्तु नहीं कर सके. तब निरंतर अठारह दिनों तक सर्वेश्वर भगवान और नरसिंह भगवान का युद्ध चला. इस युद्ध का कोई अंत नहीं दिख रहा था.
जब समय के साथ नरसिंह भगवान का क्रोध शांत होने लगा तब उन्होंने विचार किया कि शिवजी ने ये रूप केवल उनका क्रोध शांत करने के लिए लिया है. तब नरसिंह भगवान ने स्वयं को शांत किया और श्री हरिविष्णु में विलीन हो गए. वहीँ, कुछ कथाओं के अनुसार, शिवजी के शरभ अवतार का रूप बहुत भयंकर था. उनके सामने नरसिंह रूप की शक्तियां खत्म हो गई थीं और नरसिंह भगवान ने समर्पण कर स्वयं को शांत किया और भगवान विष्णु में विलीन हो गये.
इस तरह भगवान नरसिंह का क्रोध शांत हुआ और शिवजी के शरभ अवतार द्वारा सम्पूर्ण सृष्टि को नरसिंह भगवान के क्रोध से बचाया गया.


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