धर्म-अध्यात्म

कब है पर्व वट सावित्री व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Tara Tandi
22 May 2021 9:43 AM GMT
कब है पर्व वट सावित्री व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
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ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट अमावस्या और वट सावित्री व्रत के रूप में जाना जाता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट अमावस्या और वट सावित्री व्रत के रूप में जाना जाता है. ये दिन सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत खास है. इस दिन महिलाएं पति की लंबी आयु, अखंड सौभाग्य और संतान प्राप्ति की कामना के लिए व्रत रखकर बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से पति की दीर्घायु होने के साथ उसे तमाम संकटों से छुटकारा मिलता है. इस बार वट सावित्री व्रत 10 जून को पड़ रहा है.

माना जाता है कि इसी दिन वट वृक्ष के नीचे बैठकर सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण बचाए थे. तब से हर साल ज्येष्ठ अमावस्या को वट सावित्री व्रत के रूप में मनाया जाने लगा. इस दिन महिलाएं बरगद की पूजा के दौरान वृक्ष की 7, 11, 21, 51, 101 आदि सामर्थ्य के अनुसार परिक्रमा करती हैं और सात बार कच्चा सूत लपेटती हैं. जानिए इस व्रत से जुड़ी जरूरी बातें.
शुभ मुहूर्त
व्रत तिथि : 10 जून 2021 दिन गुरुवार
अमावस्या प्रारंभ : 9 जून 2021 को दोपहर 01ः57 बजे
अमावस्या समाप्त : 10 जून 2021 को शाम 04ः20 बजे
व्रत पारण : 11 जून 2021 दिन शुक्रवार
इसलिए महिलाएं लगाती हैं वृक्ष की परिक्रमा
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र की मानें तो सात बार सूत लपेटने का आशय पति से सात जन्मों तक के संबन्ध की कामना से होता है. वहीं परिक्रमा लगाने के पीछे कारण है कि बरगद के वृक्ष में भगवान का वास माना जाता है, इसके अलावा बरगद के पेड़ के नीचे ही सावित्री को उसके पति के प्राण वापस मिले थे. इसलिए ये पेड़ पूज्यनीय माना जाता है. श्रद्धानुसार 7, 11, 21, 51, 101 परिक्रमा लगाकर महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, अखंड सौभाग्य, सुख समृद्धि और संतान प्राप्ति की कामना करती हैं.
पूजा विधि
इस दिन पूजा के लिए एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे जाते हैं और उन्हें कपड़े से ढंक दिया जाता है. एक अन्य बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है. इस प्रतिमा और वट वृक्ष पर महिलाएं जल, कुमकुम, अक्षत, पुष्प और प्रसाद अर्पित करती हैं और सूत के धागे को वट वृक्ष पर लपेटती हैं और परिक्रमा लगाती हैं. इसके बाद महिलाएं वट सावित्री व्रत कथा सुनती हैं.


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