धर्म-अध्यात्म

'निर्जला एकादशी' का व्रत कब है, जानें शुभ तिथि और नियम

Tara Tandi
11 Jun 2021 1:27 PM GMT
निर्जला एकादशी का व्रत कब है, जानें  शुभ तिथि और नियम
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एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है और निर्जला एकादशी के व्रत को तो सभी एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है और निर्जला एकादशी के व्रत को तो सभी एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को लोग रखते हैं. इस साल ये तिथि 20 जून 2021 को है. सांय 04 ब'निर्जला एकादशी' का व्रत, कब है, शुभ तिथि और नियम, When is the fast of 'Nirjala Ekadashi', auspicious date and ruleजकर 21 मिनट से ये शुरू होकर 21 जून को दोपहर 01 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगा. अगर उदया तिथि की बात करें तो इस तिथि के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत 21 जून को लोग रखेंगे और इस व्रत का पारण लोग 22 जून को किया जाएगा.

इस व्रत के नियम

ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करना बहुत ही कठिन है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इस व्रत में व्रत करने वाले को एक बूंद भी जल ग्रहण नहीं करना होता. इस निर्जला एकादशी का व्रत रखने से एक दिन पहले से ही चावल का त्याग कर देना चाहिए. कहा जाता है कि इस व्रत करने वाले को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए.

इस व्रत का महत्व

शास्त्रों में ये निहित है कि, लोगों को निर्जला एकादशी का व्रत अपने जीवन में रखना ही चाहिए. इस व्रत को निरजला एकादशी तो कहते ही हैं लेकिन इसके अलावा इसे पांडव एकादशी भी कहा जाता है. इस बारे में एक कथा भी प्रचलित है. दरअसल, ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में इस व्रत का पालन भीमसेन ने किया था जिसके कारण उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई थी. इसके अलावा ये भी मान्यता है कि इस व्रत को जो कोई भी करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस व्रत पर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना पूरे विधि-विधान से की जाती है.

इस व्रत को करने से मिलता है पूरे वर्ष भर फल

एक मान्यता के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत रखने से एक साथ वर्ष भर की एकादशी का फल मिलता है. वैसे भी हिंदी पंचांग के अनुसार, एकादशी एक माह में दो बार आती है और इस तरह से पूरे वर्ष भर में ये एकादशी 24 बार पड़ती है.

नोट- यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.

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