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देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस को युवा दिवस के रूप में काफी धूमधाम से मनाया जाता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस को युवा दिवस के रूप में काफी धूमधाम से मनाया जाता है. हर वर्ष ये दिन 12 जनवरी को मनाए जाने का विधान है, क्योंकि साल 1863 में, इसी दिन कोलकाता के एक साधारण परिवार में स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था. बाद में अध्यात्म के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए कार्यों को देख, देश-विदेश के युवाओं का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ. बचपन से ही विवेकानंद जी को संगीत, साहित्य, तैराकी, घुड़सवारी और कुश्ती में रूचि थी.
पिता की मृत्यु ने भी नहीं तोड़ा मनोबल
स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) ने अपनी तेजस्वी वाणी और अपने प्रभाव से विदेशों में भी भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का डंका बजाया. उनके द्वारा सदैव वैज्ञानिक सोच तथा तर्क पर बल ही नहीं दिया गया, बल्कि उन्होंने धर्म को लोगों की सेवा और सामाजिक परिवर्तन से जोड़ने की अपनी विचारधारा को भी लोगों तक पहुंचाने का कार्य किया. जब स्वामी विवेकानंद 20 वर्ष के थे, तब ही उनके पिता विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई थी. ऐसे में पिता की मृत्यु के बाद स्वामी विवेकानंद को भी, अत्यंत गरीबी की मार का सामना करना पड़ा था लेकिन गरीबी और भूख भी उनका मनोबल और ईमान नहीं डगमगा सकी.
अपनी विचारधारा से किया युवाओं का मार्गदर्शन
स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण जीवन, उनके संघर्ष और उनकी विचारधारा, ये सभी सैकड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं क्योंकि स्वामी विवेकानंद के विचारों पर चलकर ही लाखों-करोड़ों युवाओं ने अपने जीवन में सही बदलाव कर उसे सार्थक बनाया. सन् 1893 में स्वामी विवेकानंद को अमेरिका के शिकागो में आयोजित किए गए विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला था. स्वामी विवेकानंद जी, रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे और उन्होंने ही रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी, जो आज भी भली-भांति जनहित के लिए कार्य कर रहा है.
Triveni
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