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22 मार्च को हिंदू नववर्ष 2080 लग चुका है और 3 अप्रैल को पहला प्रदोष व्रत पड़ा है. चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत है. 3 अप्रैल दिन सोमवार को प्रदोष व्रत होगा और इसे सोम प्रदोष व्रत (Som Pradosh Vrat 2023) भी कहते हैं. इस दिन भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी. हर महीने दो प्रदोष होते हैं और अप्रैल महीने का 3 अप्रैल को पहला प्रदोष व्रत है. सोमवार का दिन भगवान शंकर का माना जाता है और इस दिन प्रदोष व्रत की पूजा काफी अच्छी होने वाली है. चलिए आपको इस खबर को विस्तार में बताते हैं.
हिंदू नववर्ष का पहला प्रदोष व्रत कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 3 अप्रैल दिन सोमवार को सुबह 6 बजकर 24 मिनट पर शुरू हो रही है. इसी तिथि की समाप्ति 4 अप्रैल दिन मंगलवार की सुबह 8 बजकर 05 मिनट पर होगी. उदयातिथि और प्रदोष व्रत की पूजा का मुहूर्त इसी के आधार पर होगा. हिंदू नववर्ष का ये पहला प्रदोष व्रत होगा जो 3 अप्रैल को पड़ेगा और सोमवार के दिन होने से इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जा रहा है. 3 अप्रैल के दिन सोम प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 40 मिनट से प्रारंभ होकर रात 8 बजकर 58 मिनट तक रहेगा. इस दिन भगवान शंकर की पूजा पूरे दो घंटे के शुभ मुहूर्त के साथ की जा सकती है.
जानकारी के मुताबिक, 3 अप्रैल को प्रदोष व्रत होने के साथ शिववास भी होगा. इस दिन रुद्राभिषेक करवाना अच्छा होता है. इस दिन शिववास सुबह 6 बजकर 24 मिनट तक कैलाश पर होगा और उसके बाद नंदी पर होगा. प्रदोष व्रत के दिन रुद्राभिषेक करवाना बहुत अच्छा हो सकता है.
क्या है सोम प्रदोष व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यता है कि मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भक्त प्रदोष का व्रत रखता है. आपकी जो भी मनोकामनाएं होती हैं उसके लिए आपको सोम प्रदोष का व्रत रखना चाहिए और भगवान शंकर की पूजा विधिवत करनी चाहिए. भगवान शंकर के आशीर्वाद से आपकी सभी इच्छा पूरी होगी विशेषकर वो इच्छा जिसके लिए आपने व्रत रखा है. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर की प्रतिमा के आगे धूप-दीप जलाकर उनकी अच्छे से पूजा करें, चालिसा पढ़ें और आरती भी करें.
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Apurva Srivastav
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