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जानिए व्रत पूजा की तिथि और विधि
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ज्योतिष. हिंदू धर्म में पूर्णिमा और अमावस्या दोनों तिथियों को खास माना जाता है ये हर माह के आरंभ और अंत में पड़ती है लेकिन आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पूर्णिमा बेहद ही खास होती है जिसे शरद पूर्णिमा या फिर रास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है लोग इस दिन पूजा पाठ करते हैं और उपवास भी रखते हैं
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा साल की एक ऐसी पूर्णिमा है जिस दिन चंद्रमा 16 कलाओं का होता है इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना नदी के किनारे मुरली वादन करते हुए गोपियों के साथ रास रचाया था इस साल शरद पूर्णिमा 9 अक्टूबर को पड़ रही है इस दिन लक्ष्मी पूजा को बेहद ही खास माना जाता है तो आज हम आपको शरद पूर्णिमा के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
जानिए शरद पूर्णिमा व्रत पूजन विधि—
आपको बता दें कि शरद पूर्णिमा का व्रत बेहद ही खास होता है इस दिन व्रत पूजन करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर धन की वर्षा करती है इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके आराध्य देवता को सुंदर वस्त्रों, गहनों से सुशोभित किया जाता है फिर आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से भगवान का पूजन किया जाता है गौर दूध से बनी खीर में घी और चीनी मिलाकर आधी रात को रसोई समेत भगवान को भोग लगाया जाता है इस दिन रात्रि जागरण का बेहद महत्व होता है इस दिन लोग रात में जागकर भजन कीर्ति करते हुए चंद्रमा की रोशनी में ही सुई में धागा पिरोते है
मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की पूर्ण रोशनी में खीर से भरे बर्तन को कर देना चाहिए और दूसरे दिन उसका प्रसाद सभी में बांटना चाहिए ऐसा करने से निरोगी सेहत का आशीर्वाद मिलता है। वही रात्रि के समय कथा सुनने के बाद एक लोटे में जल रखकर पत्ते के दोने में गेहूं और रोली अक्षत रखकर कलश की पूजा करके दक्षिण अर्पित किया जाता है फिर गेहूं के 14 दानें हाथ में लेकर संपूर्ण कथा सुनी जाती है कलश के जल से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन व्रत पूजन करने से सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है और धन से जुड़ी समस्याएं भी दूर हो जाती है।
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