धर्म-अध्यात्म

कब है रंगभरी एकादशी, जानें इसका महत्व

Ritisha Jaiswal
11 March 2022 4:46 PM GMT
कब है रंगभरी एकादशी, जानें इसका महत्व
x
फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है। होली से पहले पड़ने वाली एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है।

फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है। होली से पहले पड़ने वाली एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है। हिंदू धर्म में रंगभरी एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मां पार्वती से विवाह के बाद फाल्गुन शुक्लपक्ष की एकादशी पर गौना लेकर काशी आए थे। इस मौके पर वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में बड़ा आयोजन होता है। मान्यता है कि इस दिन बाबा विश्वनाथ खुद भक्तों के साथ होली खेलते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर में रंगभरी एकादशी के दिन रजत पालकी में राजशाही पगड़ी बांधे बाबा विश्वनाथ की बारात सजती है। उनके साथ गौरी जी को भी सजाया जाता है और उनके साथ बालरूप गणेश भी रहते हैं। इसी दौरान शिवभक्त भभूत की होली खेलते हैं। इसके बाद शोभायात्रा निकलती है। शोभायात्रा के बाद जब प्रतिमाएं वापस पहुंचती हैं, तो उन्हें गर्भगृह में स्थापित किया जाता है और विशेष आरती की जाती है।

आमलकी एकादशी मुहूर्त-
एकादशी तिथि प्रारम्भ - मार्च 13, 2022 को 10:21 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त - मार्च 14, 2022 को 12:05 पी एम बजे
30 अप्रैल को लगेगा सूर्य ग्रहण, इन 4 राशियों का जागेगा सोया हुआ भाग्य
पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 15 मार्च को 06:31 ए एम से 08:55 ए एम
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - 01:12 पी एम
रंगभरी एकादशी पूजा- विधि-
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
भगवान की आरती करें।
भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।


Next Story