धर्म-अध्यात्म

कब है नरक चतुर्दशी, इसी दिन भगवान कृष्ण ने किया था नरकासुर का वध

Ritisha Jaiswal
9 Nov 2020 1:24 PM GMT
कब है नरक चतुर्दशी,  इसी दिन भगवान कृष्ण ने किया था नरकासुर का वध
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दीवाली का त्यौहार कोई एक दिवसीय पर्व नहीं है बल्कि यह पांच दिनों तक चलने वाला त्यौहार है जिसकी रौनक अभी से दिखने लगी है. इसके दूसरे दिन होती है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | दीवाली का त्यौहार कोई एक दिवसीय पर्व नहीं है बल्कि यह पांच दिनों तक चलने वाला त्यौहार है जिसकी रौनक अभी से दिखने लगी है. इसके दूसरे दिन होती है नरक चतुर्दशी जिसे नरक चौदस व रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है. यूं तो इस दिन यमराज की उपासना की जाती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि कृष्ण आराधना के लिए भी यह दिन विशेष महत्व रखता है? इस बार पंचांग में तिथियों के आधार पर नरक चतुर्दशी व दीवाली एक ही दिन 14 नवंबर को मनाई जाएगी. सुबह नरक चतुर्दशी होगी तो वहीं दोपहर बाद अमावस्या लगने से इसी दिन दीवाली पूजन होगा.

क्यों होती है भगवान कृष्ण की पूजा

आपने अक्सर नरकासुर वध की कथा तो सुनी ही होगी. नरकासुर एक राक्षस था जिसका वध भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से किया था. जिस दिन उन्होंने नरकासुर का संहार किया उस दिन नरक चतुर्दशी ही थी. इसीलिए इस दिन कई जगहों पर भगवान कृष्ण की विशेष आराधना की जाती है,

वध के बाद 16 हज़ार कन्याओं से हुआ था विवाह

पुराणों में वर्णन मिलता है कि नरकासुर ने 16 हज़ार कन्याओं को बंधक बनाकर रखा था. और उन्हें ही आज़ाद कराने के लिए भगवान कृष्ण ने सत्यभामा की मदद ली और नरकासुर का संहार कर दिया. लेकिन बाद में उन लड़कियों के माता-पिता ने उन्हें अस्वीकार कर दिया तो नंदलाला ने उन सभी सोलह हज़ार कन्याओं के साथ विवाह किया. और उन्हें समाज में सम्मान दिलवाया. इसीलिए भगवान कृष्ण की 16 हज़ार पत्नियां व 8 मुख्य पटरानियां हैं.

रूप चौदस पर करें यम की पूजा

वहीं इस दिन सिर्फ कृष्ण की ही नहीं बल्कि यम देवता की पूजा का भी विधान है. यही कारण है कि इस दिन घर के मुख्य आंगन में या बीचों बीच दीपक जलाकर परिवार के सदस्यों के बेहतर स्वास्थ्य की कामना की जाती है. इस दिन दीप दान का काफी महत्व होता है.

नरक चतुर्दशी पूजा विधि

कहते हैं इस दिन यम की पूजा की जाए तो अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाती है. इसीलिए इस दिन घर के मुख्य द्वार के बांई ओर अनाज की ढेरी रखें. इस पर सरसों के तेल का एक मुखी दीपक जलाना चाहिए लेकिन दीपक की लौ दक्षिण दिशा की ओर कर दें.



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