धर्म-अध्यात्म

मौनी अमावस्या कब है? जानें तिथि, मुहूर्त और धार्मिक महत्व

Tulsi Rao
21 Jan 2022 4:01 PM GMT
मौनी अमावस्या कब है? जानें तिथि, मुहूर्त और धार्मिक महत्व
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साल भर में पड़ने वाली सभी अमावस्याओं में मौनी अमावस्या का विशेष स्थान है. इस दिन गंगा स्नान (Ganga Snan) का भी विशेष महच्व

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Mauni Amavsaya 2022: हिंदू कैलेंडर में हर माह के कृष्ण पक्ष की आखिरी तिथि अमावस्या होती है. माघ माह (Magh Month) के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya 2022) के नाम से जाना जाता है. मौनी अमावस्या को माघी अमावस्या (Maghi Amavasya 2022) के नाम से भी जाना जाता है. साल भर में पड़ने वाली सभी अमावस्याओं में मौनी अमावस्या का विशेष स्थान है. इस दिन गंगा स्नान (Ganga Snan) का भी विशेष महच्व है.

धार्मिक मान्यता है कि मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya 2022) के दिन गंगा नदी का जल अमृत के समान होता है. इसमें आज के दिन स्नान करने से सभी पाप मिट जाते हैं. साथ ही, निरोगी काया प्राप्त होती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. मौनी अमावस्या के दिन देशभर के प्रमुख तीर्थस्थल जैसे प्रयागराज, हरिद्वार आदि में स्नान के लिए लोगों की भीड़ जमा होती है. हालांकि, इस बार कोरोना के चलते मौनि अमावस्या का स्नान सीमित दायरे में रहकर किया जाएगा. आइए जानते हैं मौनी अमावस्या कब है, मुहूर्त और इसका धार्मिक महत्व.
मौनी अमावस्या 2022 तिथि और मुहूर्त (Mauni Amavasya 2022 Tithi And Muhurat)
माघ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 31 जनवरी, सोमवार को देर रात 02 बजकर 18 मिनट पर शुरू होगी और 01 फरवरी, मंगलवार को दिन में 11 बजकर 15 मिनट पक समाप्त होगी. बता दें कि स्नान आदि कार्यक्रम सूर्योदय के समय किया जाता है, इसलिए मौनी अमावस्या 01 फरवरी के दिन मनाई जाएगी.
मौनी अमावस्या का महत्व (Mauni Amavasya Significance)
धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya 2022) के दिन स्नान आदि के बाद व्रत रखा जाता है. इस दिन मौन व्रत (Maun Vrat) रखने का विधान है. मौन व्रत का अर्थ स्वंय के अंतर्मन में झांकना, ध्यान करना और प्रभु की भक्ति में लीन होने से है. मौन व्रत (Mauni Vrat) रखने से अपने अंदर आध्यात्मिकता का विकास भी होता है.
मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya 2022) के दिन अन्य अमावस्या की तरह ही स्नान के बाद पितरों का तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान आदि कर्म किए जाते हैं. ताकि पितरों की आत्मा को तृप्त किया जा सके. पितृदोष दूर करने के लिए भी ये दिन उत्तम है. इस दिन तर्पण आदि से पितर प्रसन्न होते हैं. और वंशजों को वंश वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं


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