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प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप यानी कालभैरव की उपासना की जाती है।
जनता से रिश्ता वेबडेसक | प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप यानी कालभैरव की उपासना की जाती है। इस दिन को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भक्त कालभैरव का व्रत करते हैं। कहा जाता है कि कालाष्टमी का व्रत सप्तमी तिथि से शुरू हो जाता है। धार्मिक मूलग्रन्थों के अनुसार, अष्टमी तिथि रात्रि के दौरान जिस समय प्रबल होती है उसी दिन कालाष्टमी का व्रत किया जाना चाहिए। मान्यता है कि इस जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ व्रत करता है और विधि-विधान के साथ पूजा करता है उसके सभी कष्ट मिट जाते हैं। अगली कालाष्टमी 4 फरवरी, गुरुवार को पड़ रही है। तो आइए जानते हैं कालाष्टमी का शुभ मुहूर्त और महत्व।
कालाष्टमी का शुभ मुहूर्त:
माघ, कृष्ण अष्टमी, 4 फरवरी, गुरुवार
अष्टमी तिथि प्रारंभ- 4 फरवरी, गुरुवार रात 12 बजकर 7 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त- 5 फरवरी, शुक्रवार रात 10 बजकर 7 मिनट तक
कालाष्टमी का महत्व:
मान्यता है कि जो व्यक्ति कालाष्टमी के दिन व्रत और पूजा करता है उसकी उन मनोकामनाओं के भी पूर्ति होती है जिनकी बहुत समय से पूर्ति नहीं हो पा रही हो। कालभैरव का रूप भयावय है। लेकिन अपने भक्तों के लिए वो दयालु और कल्याणकारी हैं। कहा जाता है कि इस दिन भैरव चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए। साथ ही इश दिन कुत्ते को भोजन अवश्य कराया जाना चाहिए। अगर ऐसा किया जाता है तो भैरव बाबा प्रसन्न हो जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कुत्ता भैरव बाबा का वाहन है। ऐसे में इस दिन कुत्ते को भोजन कराने का महत्व बेहद विशेष होता है।
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Triveni
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