धर्म-अध्यात्म

कजरी तीज कब है? जानें तिथि, मुहूर्त व्रत विधि और महत्व

Shiddhant Shriwas
7 Aug 2021 10:13 AM GMT
कजरी तीज कब है? जानें तिथि, मुहूर्त व्रत विधि और महत्व
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कजरी तीज हर साल भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि मनाई जाती है। इस बार यह त्योहार 24 अगस्त को मनाया जाएगा

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कजरी तीज हर साल भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि मनाई जाती है। इस बार यह त्योहार 24 अगस्त को मनाया जाएगा। हिन्दू पंचांग के अनुसार, तृतीया तिथि 24 अगस्त को शाम 4 बजकर 5 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानि 25 अगस्त की शाम 4 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी। इस बार कजरी तीज पर धृति योग बन रहा है। ऐसी मान्यता है कि धृति योग में किए गए सारे कार्य पूरे होते हैं। कजरी तीज को कजली तीज, बूढ़ी तीज व सातूड़ी तीज भी कहा जाता है। इस दिन सुहागनें उपवास रखकर भगवान शिव और माता पार्वती से पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। कजरी तीज के दिन महिलाएं नीमड़ी माता की पूजा करती हैं। यह व्रत सुहागन स्त्रियां सुख-समृद्धि की कामना के लिए करती हैं। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। गर्भवती महिलाएं जल और फलाहार ले सकती हैं। कुवांरी लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं। गाय की पूजा करने के बाद गाय को आटे की सात लोईयों पर गुड़ और घी रखकर खिलाया जाता है। उसके बाद व्रत का पारण किया जाता है।

पूजन करने के लिए मिट्टी व गोबर से दीवार के किनारे तालाब के जैसी आकृति बनाई जाती है। घी और गुड़ से पाल बांधा जाता है और उसके पास नीम की टहनी को रोपा जाता है। जो तालाब के जैसी आकृति बनाई जाती है। उसमें कच्चा दूध और जल डाला जाता है। फिर दिया प्रज्वलित किया जाता है। थाली में नींबू, ककड़ी, केला, सेब, सत्तू, रोली, मौली, अक्षत आदि पूजा सामाग्री रखी जाती है।

सबसे पहले पूजा की शुरूआत नीमड़ी माता को जल व रोली के छींटे देने से करें। फिर अक्षत चढ़ाएं। अनामिका उंगली से नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली की 13 बिंदिया लगाएं। साथ ही काजल की 13 बिंदी भी लगाएं, काजल की बिंदियां तर्जनी उंगली से लगाएं।

नीमड़ी माता को मोली चढ़ाएं और उसके बाद मेहंदी, काजल और वस्त्र भी अर्पित करें। फिर उसके बाद जो भी चीजें आपने माता को अर्पित की हैं, उसका प्रतिबिंब तालाब के दूध और जल में देखें। तत्पश्चात गहनों और साड़ी के पल्ले आदि का प्रतिबिंब भी देखें।

कजरी तीज पर संध्या को पूजा करने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य दिया जाता है। फिर उन्हें भी रोली, अक्षत और मौली अर्पित करें। चांदी की अंगूठी और गेंहू के दानों को हाथ में लेकर चंद्रमा के अर्ध्य देते हुए अपने स्थान पर खड़े होकर परिक्रमा करें।

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