धर्म-अध्यात्म

कब है? वट सावित्री व्रत, जानें शुभ मुहूर्त से लेकर सब कुछ

Teja
18 May 2022 10:06 AM GMT
कब है? वट सावित्री व्रत, जानें शुभ मुहूर्त से लेकर सब कुछ
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वट सावित्री का इस साल व्रत 30 मई को है। सोमवार का दिन इस व्रत पड़ने की इसका महत्व कई गुना अधिक बढ़ गई है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | वट सावित्री का इस साल व्रत 30 मई को है। सोमवार का दिन इस व्रत पड़ने की इसका महत्व कई गुना अधिक बढ़ गई है। वट सावित्री का व्रत हर साल ज्येष्ठ महीने के अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है। इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के साथ-साथ वट यानी बरगद के वृक्ष की पूरे विधि विधान से पूजा आराधना करती हैं। आपको बता दें कि ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है।

मान्यता के मुताबिक है कि जिस तरह सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण को यमराज के हाथों से छीन कर लाई थी, उसी तरह इस व्रत को करने से पति के ऊपर आने वाली हर परेशानियां दूर हो जाती है। कहा जाता है कि इस दिन सावित्री ने अपने पति के लिए वट वृक्ष के नीचे तप कर पति को यमराज से छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। इसीलिए महिलाएं हर साल वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इस व्रत को करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य और संतान की प्राप्ति होती है।
वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त
तिथि- 30 मई, 2022, सोमवार
अमावस्या तिथि प्रारंभ- 29 मई, 2022, दोपहर 02:54 बजे से
अमावस्या तिथि का समापन- 30 मई, 2022, सांय 04:59 बजे
इस दिन दान पुण्य का भी खास महत्व है। कई जगहों पर इस दिन सास को बायना देने की भी परंपरा है। कहा जाता है कि इस दिन सास को खाना, फल, कपड़े आदि का दान करना बहुत शुभ होता है। इसके अलावा अपने से किसी भी बड़े को भी दान किया जाता है। हाथ का पंखा, खरबूज और आम का दान के लिए इस्तेमाल होता है।
वट सावित्री के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के साथ बरगद के पेड़ की चारों तरफ 11, 21 या फिर 108 परिक्रमा भी करती हैं। इसके बाद उसके चारों ओर कलावा बांधती हैं और कथा सुनी जाती है। इस दिन भीगे हुए चने खाने की भी परंपरा है। कहा जाता है कि इस दिन 11 भीगे हुए चने बिना चबाए खाए जाते हैं। उसी को खाकर व्रत का समापन होता है।
धर्म शास्त्रों में बरगद के पेड़ पर त्रिदेवों का वास माना गया है। कहा जाता है कि बरगद के पेड़ के जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में शिव जी का वास होता है। वहीं बरगद के वृक्ष पर हर वक्त माता लक्ष्मी का निवास होता है। इतना ही नहीं बरगद के पेड़ से लटकती हुई जड़ों को सावित्री के रूप में माना गया है। कहा जाता है कि मार्कंडेय ऋषि को भगवान कृष्ण ने बरगद के पत्ते पर ही दर्शन दिया था। ऐसी मान्यता है कि इसलिए बरगद के वृक्ष की पूजा करने से मनोवांछित फल प्राप्ति होती है।


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