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छठ महापर्व ; छठ महापर्व शुरू होने में अब कुछ ही दिन बचे हैं, लेकिन त्योहार की तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं. छठ मईया और सूर्य देव गीत घर-घर में सभी गा रहे है । चार दिनों तक चलने वाला यह भव्य छठ उत्सव, प्रकृति, जल, वायु और सूर्यदेव की बहन षष्ठी माता और उषा, प्रकृति, जल, वायु को समर्पित है। इस पूजा में सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। सदियों पुरानी यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। यह त्यौहार श्रद्धा और ईमानदारी से मनाया जाता है। इसीलिए इसे लोक आस्था का महान पर्व कहा जाता है।
छठ पर्व की ये है तिथि
इस वर्ष छठ महापर्व की तिथि 17 नवंबर से शुरू होने जा रही है। छठ महापर्व के दौरान व्रत करने वाले श्रद्धालु 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते है। छठ के व्रत को सबसे कठिन व्रतों में माना जाता है। हर वर्ष की तरह छठ महापर्व की शुरुआत नहाय खाय के साथ होगी। इस महापर्व का समापन 20 नवंबर को ऊषा अर्घ्य और पारण के साथ किया जाएगा। बता दें कि छठ महापर्व का व्रत आमतौर पर सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, संतान के सुख और घर की सुख समृद्धि के लिए रखती है।
तिथियां
17 नवंबर – पहला दिन- नहाय खाय
18 नवंबर – दूसरा दिन – खरना
19 नवंबर – तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य
20 नवंबर – चौथा दिन – ऊषा अर्घ्य
जानें नहाय खाय का मुहूर्त : छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है। ऐसे में नहाय खाय का इस पर्व में विशेष महत्व है। नहाय खाय के दिन व्रती सुबह नदी स्नान करते हैं और नए वस्त्र धारण करते है। इसके बाद प्रसाद में कद्दू चना दाल की सब्जी, चावल बनाया जाता है। इस पूरे प्रसाद को सेंधा नमक और देसी घी से तैयार किया जाता है, जिसे घर के सभी सदस्य ग्रहण करते है।
जानें खरना के बारे में : छठ पर्व में दूसरे दिन यानी 18 नवंबर को खरना मनाया जाएगा, जिसमें वर्ती को एक समय शाम को ही मीठा भोजन करने के लिए दिया जाता है। खरना में आमतौर पर खीर का प्रसाद मिलता है, जो मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर बनाया जाता है। इस प्रसाद को लेने के बाद फिर से निर्जला व्रत शुरू होता है जो पारण के बाद ही खुलता है।
संध्या और ऊषा अर्घ्य : तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है जिसमें घर के सभी लोग मिलकर घाट पर पहुंचते हैं और डूबते सूर्य को अर्घ्य देते है। इस दौरान पूजा में फल, ठेकुआ, चावल के लड्डू का प्रसाद सूप में सजाया जाता है, जिससे अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद सप्तमी तिथि पर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। ये अर्घ्य देने के बाद व्रती पारण करती है।