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फाइल फोटो
भगवान भास्कर को समर्पित लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भगवान भास्कर को समर्पित लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। छठ पर्व सूर्य की उपासना का पर्व है, इसलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। चार दिनों का यह पर्व चतुर्थी से ही शुरू होकर सप्तमी की सबुह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ खत्म होता है। इस साल ये चार दिन 28 अक्टूबर से 31 अक्टूबर के मध्य पड़ेंगे। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों में सूर्य देव और छठी मईया की अराधना करने से व्रती को सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। षष्ठी देवी की पूजा से संतान को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने का आशीर्वाद भी मिलता है।
मान्यता के अनुसार, छठ सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्युषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। यह धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व का भी पर्व है, जो स्वच्छता के साथ प्रकृति को संरक्षित करने का संदेश देता है। अदरक, मूली, गाजर, हल्दी जैसी गुणकारी सब्जियों से अर्घ्य दिया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। प्रकृति के संरक्षण के साथ-साथ पर्व के दौरान सूर्य की किरणों से हमारे शरीर को प्रचुर मात्रा में विटामिन डी मिलता है। गाय की घी का दीप पूरी रात जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और हवन से जीवाणुओं का नाश होता है।
छठ पर्व से जुड़ीं कहानियां
इस पर्व की प्राचीनतम का साहित्यिक स्रोत जहां रामायण और महाभारत के किवदंतियों में मिलता है, वहीं पुरातात्विक साक्ष्य के रूप में कुषाण वंश के सिक्कों पर सूर्य उपासना के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। मान्याता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए थे तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था और माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से उनकी मनोकामना पूरी हुई। छठ की पौराणिक कथाओं का संबंध रामायण से भी बताया जाता है। दशहरे के दिन रावण वध के बाद श्रीराम 14 साल बाद अयोध्या लौटे थे और अयोध्या में दिवाली के छठे दिन सरयू नदी के तट पर अपनी पत्नी सीता के साथ षष्ठी व्रत रखकर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया था। इसके अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद उन्होंने राजकाज संभाला था।
राजा प्रियव्रत की कहानी
छठ पर्व का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। कथा के अनुसार,राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी और इस वजह से वे प्राय: दुखी रहते थे। महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा और यज्ञ के बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ। राजा प्रियव्रत उस मृत बालक को लेकर श्मशान में गए और शव छाती से चिपकाकर आंखों से आंशुओं की धारा बहाने लगे। तभी आकाश से एक विमान उतरा, जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं। राजा ने बालक को भूमि पर रख दिया और बड़े आदर के साथ उनकी पूजा और स्तुति की। तब उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा,"मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं। मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं।"
इसके बाद देवी षष्ठी ने उस बालक को उठा लिया और उसे फिर से जीवित कर दिया। अभी महाराज प्रियव्रत उस बालक की ओर देख ही रहे थे कि देवी उस बालक को लेकर आकाश में जाने को तैयार हो गईं। यह देख राजा ने पुन: देवी की स्तुति की। देवी ने राजा से कहा, "तुम स्वायम्भुव मनु के पुत्र हो। तीनों लोकों में तुम्हारा शासन चलता है। तुम सर्वत्र मेरी पूजा कराओ और स्वयं भी करो। मैं तुम्हें कमल के समान मुखवाला यह मनोहर पुत्र प्रदान करूंगी और उसका नाम सुव्रत होगा।"
उत्तम वर देकर देवी स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गईं और राजा भी प्रसन्न मन होकर मंत्रियों के साथ अपने घर लौट आए। इसके बाद प्रत्येक मास में शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि के अवसर पर भगवती षष्ठी का महोत्सव यत्नपूर्वक मनाया जाने लगा। संतान जन्म के छठे दिन, इक्कीस वें दिन तथा अन्नप्राशन के शुभ समय पर यत्नपूर्वक देवी की पूजा होने लगी। इस प्रकार स्तुति करने के पश्चात् महाराज प्रियव्रत ने षष्ठी देवी के प्रभाव से यशस्वी पुत्र प्राप्त कर लिया ।
छठ के बारे में वैज्ञानिक तथ्य
वैज्ञानिकों का मानना है कि कमर तक पानी में रहकर सूर्य की ओर देखना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। इससे टॉक्सिफिकेशन की प्रक्रिया होती है। इससे सूर्य की किरणों में 16 कलाएं होती हैं। मसलन रिफ्लेक्शन, रिफ्रेक्शन, डेविस्मन, स्कैटरिंग, डिस्पर्शन, वाइब्रेशन इत्यादि। लोटे से आड़े तिरछे जल की धारा से सूर्य की किरणें परिवर्तित होकर जितनी बार आंखों तक पहुंचती हैं, उससे स्नायुतंत्र जो शरीर को कंट्रोल करते हैं, सक्रिय हो जाता है। दिमाग की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। इस पूजा के प्रभाव से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। मार्कण्डेय पुराण में भी ऐसा वर्णन है।
छठ पूजा 2022 की प्रमुख तिथियां
28 अक्टूबर 2022 शुक्रवार नहाय-खाय
29 अक्टूबर 2022 शनिवार खरना
30 अक्टूबर 2022 रविवार डूबते सूर्य का अर्घ्य
31 अक्टूबर 2022 सोमवार उगते सूर्य का अर्घ्य
चार दिनों की छठ पूजा
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि यह चार दिनों का पर्व है, जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इस पर्व का समापन होता है।
छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय होता है। इस दिन स्नान के बाद घर की साफ-सफाई की जाती है और शाकाहारी भोजन किया जाता है। बिहार में लौकी खाने की परंपरा है। छठ पूजा के दूसरे दिन खरना में व्रती पूरे दिन के उपवास करते हैं। शाम के समय गुड़ की खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का सेवन करते हैं। साथ ही घर के बाकी सदस्यों को इसे प्रसाद के तौर पर दिया जाता है। व्रती इसके बाद से लेकर सप्तमी के दिन सूर्यदेव के अर्घ्य देने तक करीब 36 घंटे का व्रत रखते हैं और पानी तक नहीं पीते हैं।
तीसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। बाँस की टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि से अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और नदी, तालाब या पोखर के किनारे सूर्य देव को जल और दूध से अर्घ्य दिया जाता है। इसके साथ ही प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है। शाम को घर लौटने के बाद रात में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है।
सप्तमी यानी चौथे दिन सुबह के समय सूर्योदय से पहले जलस्रोत के पास पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता। इसके बाद छठ माता से संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का वर मांगा जाता है। पूजा के बाद व्रती थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूरा करते हैं, जिसे पारण या परना कहा जाता है।
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